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Thursday, May 11, 2017



जेठ रो महिनों


घाम जलावै लाय सी, घणो जेठ रो ताव !
पंछीड़ा तीसा मरे,   रूँखड़ा खोजे छाँव !!

ज्ञानी दानो डोकरो ,आग महीनो जेठ !
''ठंढ'' आखर रो पड्या, रख्या कान उमेठ !!

जबरो जिद्दी यो घणों,    कट नी माने वात !
जेठ तपायो आग सो , जदि तो वी वरसात !!

उगमणों ने आथमणों, थोड़ो रे कमजोर !
जेठ दुफारी लाय री,   लपट घणी बरजोर !!

जेठ दुफारी लाय री, पटके रे झिंझोड़ !
पगरख्या में पगथली ,जळे बळे बरजोर !!

धरणि तपे जद घाम से, सावण में सरसाय !
जिद्दी जेठ घणों तपे ,चिलक घणों इतराय !!  ''तनु '' 

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