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Tuesday, October 27, 2015

विधा --गीत
विधान-- सरसी छंद (16,11 अंत 21 अनिवार्य)
शरद आ गया है ,,,,, क्या सौंदर्य दिखा इसके परिवेश में ?? न पपीहे की पीहू पीहू , ,,न ही मालती चटकी , ,, न कमल खिला और न ही कुमुदिनी ....  पर शरद तो आ ही गया है………। 


जागी धरती वैभव लेकर ,
फूले हरसिंगार !
कहती शरद ऋतु है आई ,
बहती मृदु बयार ! 

खिलता रातों में चुपके से ,
कहता मन की बात !
खिलते ही वो झरने लगता ,
जीवन है इक रात !

उत्सव से मन प्रफुल्ल झूम ,
पूजन है उपक्रम !
साथ विसर्जन महिमा इसमें ,
नवीन जीवन क्रम ! 


सभी देवता एक ऋतु में ,
होते नहीं मगन !
कृष्ण ,गणेश, पितर मनाये ,
शिवमय है सावन !!


शरद की हो कोमल यामिनी ,
राग हो मालकौंस !
नभ बरसा कर भूल गया हो ,
विभावरी में ओस !!


शरद कृष्ण मय कृष्ण शरद मय़ , 
रचाया महारास !
कृष्ण साथ उसके ही हैं हर, 
गोपी को अहसास !!


कर्म करके सौ शरद जीवें ,
जीजिविषा प्रतीक !
पा चाँद की सोलह कलाएँ ,
हो अमरत्व सटीक !!… तनुजा ''तनु ''




Thursday, October 22, 2015


तो कदी ??

उ तो दस हार्यो थें एक भी नी 
सीधी राह कदी चाल्या भी नी 
जदी जागो, देर वई नी जावै , ,,
अबे तो चालो ?…कई ?? … अबार भी नी  … 
 तो कब ??

वो दस हारा तुम एक भी नहीं ;
कभी सीधी राह चलते तो सही , ,,
शायद तब बहुत देर हो चुके 
अभी नहीं ? ओह !!.... अभी भी नहीं  ??


Sunday, October 18, 2015

दीवार 

दीवार पर उग आई है,  दूब कुछ और ;
कैसी बदरिया छाई है , ऊब कुछ और ??
हवा के दोश पर रहा है आशियाना , ,,
शाम जिंदगी की आई है, खूब कुछ और  ! 

दीवार 
आसमां के नीचे घर  बे दर ओ  दीवार का ;
 मकसूद ए प्यार का हर पल हो दीदार का !
लो सबा कह कर गयी थाम कर ये बाहें चलो , ,,
नाम क्यों लेना है अब दर्द का औ बीमार का !!!
दीवार 

आँखों में है खून बातों में शिकवे  -  गिले हुए ;
दूरियाँ बहुत , कहाँ अब हमारे दिल मिले हुए ? 
दाँत काटी रोटियाँ थी  नेह नयन भर' नीर था , ,,
उठ गयी दीवार ख़त्म अब सारे सिलसिले हुए !!
       

Saturday, October 17, 2015

दीदार 

सुनालूँ आज दिल की जो मेरी ही तरह है;
आरसी के मानिंद है वो वफा की तरह है !
दिल में  उसके हैं बहुत से रंगीन ख्याल, ,,
दीदार उसका कर भी लूँ जो खुलती गिरह है !!
बेटी रो सुख 

कणी री बेटी अगर थारा घरे दुखी वेगा !
थारी बेटी भी क्यों कर कठे सुखी वेगा !!
आस्था प्यार विश्वास है जीवन रा आधार , ,,
वठेज स्नेह सनी फलां री डाली भी झुकी वेगा !! .... तनुजा ''तनु ''

Tuesday, October 13, 2015

धीरज एक गाँठ है सब्र से खोलिए ;
मित्र की ज़रूरत हो मुँह से बोलिए !
सभी चलते रहें धर्म मर्यादा के साथ, ,,
नर हो या नारी हो कभी न तौलिये !!

Sunday, October 11, 2015

 बलि चढने वाला आपकी चाह पर बलि बलि गया ?
 मूक!! बिना मन  घसीट चाह पर चढ़ बलि गया , ,,
 ये कौन सी पीढ़ी तरी किस कर्म मर युग कलि गया !
 आज नर न नृप कोई धर्महित बंध बंधन बलि गया  !!
भारी करी 

सुपणा रा सितारा टूट्या ;
गिरगिट हगरा रंग लूट्या !!

कसी सिंदूरी जाजम विछि ;
दन सूरज नारायण संग लिप्ट्या !!

जिनगी दौड़ी सरपट ;
दर्दां रा एहसास घट्या !!

वणी आँगणे चाँद है ; 
डूंगर रस्ता से हट्या

अबे आस रो साथ है ;
जाणजो पासा पलट्या !!

जाणे खुशबु फैली थकी ;
फुलडा वायरा संग लिपट्या !!

अंधारो डरी ने भाग्यो ;

रात आखि सितारा लूट्या !!
…  तनुजा ''तनु ''

Thursday, October 8, 2015

एक जिंदादिल ख्वाब 

ख्वाब के सितारे मिट गए ;
रंग ये   चुरा गिरगिट गए !!

तान कर सिंदूरी चादरें ;
सूरज संग दिन लिपट गए !!

चल पड़ी राह ये जिंदगी ;
दर्द के एहसास' घट गए !!

अंधियारा डर' के भागता ;
जात अपनी में सिमट गए !!

सोच कर उस जमीं चाँद है ;
रास्ते से परबत भी हट गए !!

मोअत्तर हुआ है जहान भी ;
गुल भी   हवा से लिपट गए !!

खेलना   साथ में    आस के ;      
अब यहाँ   पासे पलट गए  !!.... तनुजा ''तनु ''

Wednesday, October 7, 2015

शिव भोले भंडारी 



वो जटाएँ  कमाल रखते हैं !
पेंच ख़म में सवाल रखते हैं !!

नाग तम के जकड कर पाश में !
शीश शशिधर जमाल रखते हैं !!

भूल जाते बहुत बहुत भोले !
नाम लेकर मलाल गलते हैं !! 

लो चुग रहे हैं जहर भरे मोती !
पाप मोचन न' मराल थकते हैं !!

तीसरा नेत्र जो खुले भी तो !
जान लो जग, बवाल जलते हैं !!

जाप शिव का करो नित मनन कर !
सकल जग दुःख भगवान' हरते हैं !!… तनुजा ''तनु ''