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Wednesday, December 31, 2014

अनमनी सी ही सही दुआएँ तो हैं 
दूर ही से ही सही सदाएँ तो हैं 
तुम खास हो मेरे लिए खास ही रहोगे 
रूठा रूठा सा ही सही भाई तो है 
मेहरबाँ है शजर के शाख पे गुल कायम हैं  
मुस्कान तुम्हारी से बनी ग़ज़ल !!! न पूछ …''तनु ''

Tuesday, December 30, 2014

आखर मोती
झरती है लेखनी
कहे कहानी 
सिंदूर सजा
मिले धरा गगन
साँझ सबेरे

 स्याह उफ़क़
फ़साने फ़िराक़ से
रोई नर्गिस

अम्बरारंभ
अलिखित लिखित
ईश चितेरा

क्षिति उन्वान
हर पल सुन्दर
मन उलझा

नया सितारा
 दो हजार पंद्रह
नभ किनारा

  नया सितारा
 दो हजार पंद्रह
नभ किनारा

क्षितिज पार
अनहद बजता
सुने न कोई

Monday, December 29, 2014

आइए नव वर्ष में गाँव की सैर हो जाये 
कुछ हायकु :-

तिर्यक वाट 
चरमर मोजड़ी 
नीरव शाम

ग्राम मुखिया
पर्दानशीन नारी
महत्वहीन

ग्रामीण श्राप
अभिशप्त जीवन
बंधुआ जन

पुरखे बन
शाखामृग प्रसन्न
ग्राम जीवन

गाँव को चल 
दृश्य से दृश्यांतर 
शहर डेरा

आज का गाँव
गौविहीन गोकुल
नकली दूध / खरीदे दूध

गूगल छाँव
देश रहा बदल
पहुँच गाँव

दादा की छड़ी 
लालटेन कहती 
कोने में खड़ी

गीता का पाठ
दिनचर्या दादी की
चश्मा लगाए

गाँव बाहर
बागरियों की बस्ती
कुँआ अलग

ठसक न्यारी
ग्रामीण परिधान 
जँचते जन

सूखते कुँए
प्रदूषण प्रभाव / ग्लोबल वार्मिंग से
जलती धरा

जाड़े में गाँव
धुँआता कुहासा सा
जगे अलाव


ससुर आये
खांस के ठसक के
लिहाज बहू

वर्षा निमित्त 
अंधविश्वासी ग्राम
ढूँढे टोटके … ''तनु ''

देहरी सजी 
वन्दनवार  बंधे 
लौटे प्रीतम 

वर्षा निमित्त
अंधविश्वासी जन
ढूँढे  टोटके

गूगल छाँव
 देश रहा बदल
  पहुँच गाँव

Sunday, December 28, 2014

चंचल छाया 
भूत भी भविष्य भी 
ढूॅंढता फिर  /  दर भीतर / दर बदर … ''तनु ''

पीपल छाँव 
भागवत पुराण
 पंडित बाँचे 

तिर्यक वाट 
चरमर मोजड़ी 
नीरव शाम 

ससुर आये
खांस के   ठसक के
लिहाज बहू

 ठसक न्यारी
ग्रामीण परिधान 
जँचते जन

गाँव बाहर
बागरियों की बस्ती
कुँआ अलग

 जाड़े में गाँव
धुँआता कुहासा सा
जगे अलाव 

चश्मा लगाए  
गुन गुन पढ़ती  
दादीजी मेरी 

दादा की छड़ी 
लालटेन कहती 
कोने में खड़ी 

गीता का पाठ
दिनचर्या दादी की
चश्मा लगाए

ग्रामीण श्राप
अभिशप्त जीवन
बंधुआ जन

 ग्राम मुखिया
पर्दानशीन नारी
महत्वहीन 

गाँव की बोली
संस्कारित जीवन
मीठी निबोली 

आज का गाँव
गौविहीन गोकुल
नकली दूध / खरीदे दूध

गाँव को चल 
दृश्य से दृश्यांतर 
शहर डेरा
ग्रामीण श्राप
अभिशप्त जीवन
बंधुआ जन

 ग्राम मुखिया
पर्दानशीन नारी
महत्वहीन 

गाँव की बोली
संस्कारित जीवन
मीठी निबोली 

आज का गाँव
गौविहीन गोकुल
नकली दूध / खरीदे दूध

गाँव को चल 
दृश्य से दृश्यांतर 
शहर डेरा

Saturday, December 27, 2014

कौन देखेगा सब्र का प्याला ये भी  न सोच ,
हरेक  सपना सितारा लिए है ये भी न सोच !
बदलेगा  नसीब जुगनू भी मेहरबाँ होंगे ,
एक ही रात के हैं चाँद सितारे ये भी न सोच !! … ''तनु ''
आखिरी दिन की ही तलाश न करो सब्र करो ,
साँसे बोझिल उमंगें लाश न करो सब्र करो  !
आदमी का न लिखो आदमी नामा यूँ रोज़ , 
जिंदगी छोटी  सी है खलास न करो सब्र करो !!… ''तनु '' 


लिया न सब्र से काम रुसवाईयाँ मिलेंगी !
जब टूट कर बिखरोगे तन्हाईयाँ मिलेगी !! 
सब्र की राह कठिन है  परीक्षा भी कड़ी है !!!
चल पडो दुबारा राह में रानाइयाँ मिलेंगी ,.... ''तनु ''

Friday, December 26, 2014

राह न चली 
वय रुकी न वक्त 
जीवन रुका …… ''तनु ''

विद्या का ज्ञाता 
गुरु राह दिखाता 
असर ज्ञान / उपजे ज्ञान … ''तनु ''

गु  अंधियारी 
मिटे अज्ञान राह 
रू  उजियारा … ''तनु ''

मोती बिखेरे 
लहर सागर की 
चुग ले हंसा 

दृष्टिगोचर 
दिनमणि शशांक 
 स्वयं की राह 

 ईश दरश 
राह सुख मुक्ति की 
उत्तम कर्म

 धूल परत 
उड़ने की ललक 
  भूली डगर 

विद्या अविद्या 
हमारे अंतर्मन 
 राह प्रकाश

 उघारे गात 
 नरक राह पाये 
 विषयासक्त 

 दिखते दूर 
नभ के चाँद तारे 
 पथ अपना 

Thursday, December 25, 2014

 तुम्हारी राहें 
मुझ तक आई थी 
तुम  न  आये 
धूलि चाहत 
बवंडर प्रखर 
भूली डगर 
 दिखते दूर 
 नभ के चाँद तारे 
 अपनी राह 
 धूल परत ,
लड़ने  की ललक ,
 भूली डगर.…  
प्रिय डगर ,
अलौकिक सौंदर्य ,
सीमंत सज्जा .... ''तनु ''

नव वर्ष की कविता !!!

कविता का शिल्प सुधारूँ ?
 समाज का कलंक धोऊँ ?
पलटू  कैलेंडर का पन्ना ,
या बन जाऊँ पीड़ित पन्ना !! 

क्या घटा ? इंसान घटे ?
क्या पटा  ? इंसान पटे ? 
पल्लव कहाँ रहे शाख। 
अब ठूँठ हैं जलते राख !!

पक्षियों सा उड़ता समय ?
कौन कहेगा कौन अभय ??
पक्षी कहाँ रहेंगे ? तब ??
भगवन पुकारो या कहो रब ,.... 

क्यों पहने ? नए लिबास ?
अंतर से उठती है बास !
आँख रो रो करके कहती ,
कहाँ चुनु  अस्थि मोती ??

दिल बूँद बूँद  कर रिसता ,
प्यार का घट क्यों है रीता ?
साँस गले ऐंठ है अटका ,
भटका भटका क्यों भटका ? 

वही धरती , है वही पानी ,
कहाँ   वो जोश - ए - जवानी ?
मुबारक हो कहना है भाता ,
दिल क्यों अंदर अंदर घबराता ??

मुश्किल खोई आँख की ज्योति ,
ढूँढ के लायी हूँ सीप का मोती ! 
होती होती मुराद पूरी होती !!
गाती, हँसती, हँसती,  रोती !!!

सबका जीवन शुभ सुखमय हो !!!
कहो  कहो नव वर्ष मंगलमय हो !!!… ''तनु ''















Wednesday, December 24, 2014

घन से प्रीत 
चातक बावरा सा 
जनम रीत 
अनंत यात्रा 
पंछी छोड़ पिंजरा 
गगन चला 
घंटा  निनाद 
उल्हासित जीवन 
जन्मे मसीह…… 

सजा पिंजरा 
मनवा रोये गाये 
पिंजरा सज़ा… ''तनु ''
ईश दुलारे ,
नरसिंह  के प्यारे,
अशांत जन ,
दिग्भ्रान्त मन हीन ,
मसीहा न वैष्णव,…''तनु ''


चोंच  ली  खोल
ललक स्वाति  बूँद
आत्म संतोष 
चोंच  ली  खोल 
ललक स्वाति  बूँद 
चाहत भरी 
भोले विहग
निगाहें  शिकारी  की
 रह सजग 
मन कपटी ,
पीढ़ियाँ बुलंद की
कोयल पंछी ,

उड़े विहग !
कलरव गुंजन !!!
मोह बंधन,....  

तोड़ बंधन !
अमर्यादित पंछी !!!
उड़ते चले ,.... 

चकोर पंछी !!!
चाहत प्रीतम की ,… 
चाँद बंधन,.... "तनु " 
यादों के झरोखे से झांकते हैं !!!
आज हम आपका जन्म दिन मनाते हैं!!
उन सीखों को दोहराते हैं !!!
आज हम आपका जन्म दिन मनाते हैं !!
याद आती है तुम्हारी बहुत !!!
मुस्का कर भीगी आँखों को छुपाते हैं !!
वरद हस्त महसूस करते अपने सर !!
नित नित चरणों में झुक जाते हैं !!
आज हम आपका जन्मदिन मनाते हैं !!!.... ''तनु ''
नमन !!!
क्रिसमस पर ……

आई 
फरिश्तों की
मीठी आवाज़ ……… 
आज बड़ा दिन मनेगा !!!
 हुआ
सामूहिक सेवा का
आगाज़ 
आज बड़ा दिन मनेगा !!!
वृक्ष लगाओ 
कैंडल जलाओ 
केक बनाओ
करके पापी को
क्षमा
पहन काँटों ताज 
बजायें शांति का साज 
बड़ा दिन मनेगा!!!.... ''तनु ''

कौआ कोयल 
एक से रंग रंगे 
कर्म अलग 

जानते पर !!!
क्षमता परिंदे की,
हौसले पस्त ,.... ''तनु ''
ढूँढू परिंदा
खोया घरौंदा कहाँ 
उजड़ चला

काते चित्त से ,
बुनकर चिरैया !!!
सजा घोंसला ,… 

प्राण पखेरू !!!
अविनाशी सजन ,
अलौकिक है ! .... 

प्राण पखेरू !
काया पिंजरा रहा,.... 
चलता छोड़ !!

टूटे पंखों की !!!
 दास्तान पुरानी सी ,
उड़ान खोई,.... 

उजड़ा घर !
पंछी बिन घरौंदा ,.... 
सूना घोंसला !!! .... ''तनु ''

Tuesday, December 23, 2014

मन कागज़
तस्वीर बनी मिटी
यादों में तुम 
कागज़ वन 
 फूलता फलता है 
नवजीवन 

पृष्ठ कथन 
गाथा पुरातन है 
पुराण पंथी 


जग जाहिर 
नयन  है किताब 
कागज़ लिखी 

कागज़ गात 
कहता तेरी मेरी 
लिखी कहानी  


Monday, December 22, 2014

पलट पन्ना
कागज़ कायनात
नज़र बयाँ


कागज़ भर , 
लिख  लिखे  पुराण !!!
पढ़ता कोई ,
पन्ना प्रीत !!!
बुद्धि प्रदाता मीत ,… 
अभ्यास कर ,.... 
भावी लिखता ,
विधना पृष्ठ बिन …
ना टले कभी !!!

पृष्ठ पुराना,
शिक्षण इतिहास !!!
जीवंत लेख ,… 

अबूझ प्रेम !!!
टुकड़ा कागज़ का ,.......
मिली सौगात …… ''तनु ''  

Sunday, December 21, 2014

हिम सी शीत 
कहर है लहर 
जुड़ते हाथ 

 पसरी धुंध 
प्रहरी दिनकर 
निद्रा मग्न से .... ''तनु ''




Saturday, December 20, 2014

स्मित से दीप्त 
दिनकर सजाये 
अंक धरा की 
स्मित से दीप्त 
सुमधुर व्यक्तित्व 
मोहक दोस्त। .... ''तनु ''


स्थानांतरण होते रहे तो अजन अबूझ न रहता !
तू यहाँ  है कितने दिनों तक सजन अबूझ न रहता !!
बनाना  है क्यों यहाँ घरौंदा कब ठिकाना है कहाँ !
आज यहाँ  है कल है चलना चलन अबूझ न रहता !!… ''तनु ''
संसार को घर न समझ ये किसी का भी नहीं ! 
इसमें इतना ना उलझ ये किसी का भी नहीं !!
निर्वसन ही आया  है  निर्वसन  ही जाएगा !  
आज आये कल  चलना ये किसी का भी नहीं  !!… ''तनु ''
द्वन्द कैसा हार - जीत में जीत हुई
द्विग द्विग्पति त्रिभुवन में मीत हुई
सतीत्व के सत में  विनत ''नत '' है
चहुँ दिशि पावन है  बिखरा ''सत'' है.…''तनु ''

Friday, December 19, 2014

भक्ति है विभक्ति नहीं  ''रत'' है !
आसक्ति है विरक्ति नहीं  ''सत'' है !!
पद प्रधान है चिन्ह लोप हैं … "रामभक्त" ???
शक्ति है आसक्ति नहीं  ''नत'' है !!! … ''तनु ''

Thursday, December 18, 2014

किरण बिखर बतला रही, अपने मन की बात !
किरण संग सूरज रहे, …   कभी न छूटे साथ  !!   


झुक कर चल ? क्यों चलूँ ?? बारहा  न पूछ ,
गिर कर उठ ?  क्यों उठूँ  ? बारहा न पूछ ,

सबके झुकने की अदा सजदा कहलाती है !
सलाम ओ नमस्ते के अलफ़ाज़ न पूछ !!

दाता के लिबास से महक सी आती है !
उसके रहमो करम के अंदाज़ न पूछ !!

गुल में रंग -ओ - बू  अपने आप आती है !
कैसे ?और क्यों ? तनु  बारहा न पूछ !!… ''तनु''



Sunday, December 14, 2014


खुद सजी और सजाई बहारों ने कायनात !
सुन !!! चाँद के डोले की बात सबसे न्यारी है !! 

बिला नागा काफिला चला ता क़यामत !
चल साथ !!! कभी तेरी तो कभी मेरी बारी है !!

 कभी अपनों  कभी गैरों ने पहनाए लिबास !
 देख !!! तन पर जां  का लिबास सबसे भारी है !! 

आज में रहो आज में जियो  कहते जज़बात !
वो !!! रुके न रुका  वक्त ने चलने की धारी है !!…'' तनु ''


यूँ घुट घुट कर  जिंदगी का ज़हर पी लिया मैंने !
फ़साना- ए -जिंदगी देखा  लबों को सी लिया मैंने!! 

बादबां दुनिया क्या देखेगी चाक गरेबां को ??
जब्त - ए - जुनू बे गरेबाँ लिबास सी लिया मैंने,

जज़्बा -ए - इमां  न दिखा कभी इस दुनिया को !
करीब वो आज  भी नहीं तन्हा बहुत जी लिया मैंने !! 

रहा तन्हाई का सफर लंबा अभी न पूछ ''तनु'' को !
''ग़ज़ल ''में जिंदगी थी बहारों से ''गीत '' भी लिया मैंने !!…''तनु ''


Saturday, December 13, 2014

मैंने मेरी कविता बुनी एक ----  लिबास में
नन्ही अंगुलियाँ झाँकती  झीने  -- लिबास में
वक्त की करवट  अब कविता बन गयी दुल्हन
नज़ाकत है  शर्म  है छुपी नेक   --  लिबास में

कोहरे की चादर पर्वतों का लिबास बन गयी
चली शीत की धुंध नज़ारों का लिबास बन गयी
पहाड़ का जेहन तोड़ने लो आसमाँ झुक गया
बहती हुई चली नदी धरा का लिबास बन गयी

कहीं से  लिबास फटा है---- फटा ही रहने दो
घटा का खिजाब घटा है घटा ही रहने दो
ये शोर दिखावटी रहनुमाओं की भूख है
शोहरत का चाँद कटा है कटा ही रहने दो

बहर नहीं  वज्न नहीं ग़ज़ल नहीं  …  किताब  भी नहीं
काजल नहीं, महक नहीं, अलंकार नहीं .  खिताब भी नहीं
दाद तो रियाज़  अंदाज़ और अलफ़ाज़ पे मिलती है
बात नहीं तहजीब नहीं तरतीब  नही … लिबास भी नहीं

है मन में मैल और लिबास बदलने से क्या फ़ायदा
आँखों में शोखी और हिजाब बदलने से क्या फायदा
डाका, चोरी और इल्ज़ामात कई लिए हुए हैं वो
नज़र दरोगा की है निवास बदलने से क्या फ़ायदा








Friday, December 12, 2014

आँगन !!!
क्या है ??
स्वर है या
व्यंजन है !!!
किसी
सुकोमल सी
प्यारी सी
ललना की
आँखों का
अंजन है !!!
मन का
जन का
घर का
स्वजन है !!!
प्रीत की बदरी
छलकती जब
बन जाता
साजन है!!!
सितारे ले
जब आती रात
सुरभित हो
मलय का
चन्दन है!!!
किल किल
किलकारी
निश्छल
हँसी सी
हँसाता
उपवन है !!!
यादों में
सजती डोली
बातों में
उठती अर्थी
कोई चला
जो गया
स्वजन है !!!
इरादों में
सपने सजाता
गीत गाता
कुम्हलाता
जलता
क्रंदन है !!!
बूझो ना
आँगन क्या है ???……… ''तनु''

Thursday, December 11, 2014

जितना शोर ये उदधि कर रहा , 
 शांत उतना  शशांक दिख रहा ! 
 दोनों खिलाडी!!!  है पुराना खेल, 
 उलझना  रहा  उलझाना  रहा !!....  ''तनु ''

Wednesday, December 10, 2014

लिबास अलग मुखौटा अलग

लिबास अलग मुखौटा अलग तुम अंदर से कुछ और हो !!

चाहत दिखाते ज़ख़म छुपाते तुम  अंदर से कुछ और हो !!! 

सभी  कहते हैं तख़लीक़ की कोई तरतीब नहीं होती !!

छोड़ दो  !!! सादगी ज़माने की तुम अंदर से कुछ और हो !!! …''तनु ''
घट - घट हर, हर चर - चर है ! 
कण - कण हर अचर- अचर है !!
सृष्टि उसकी, चर - अचर भी !
कण - कण,  घट - घट,  चर चर है !!... ''तनु ''

Tuesday, December 9, 2014

मन मुरली  की तान में खो  खोई 
मोहन   मुरलीधरे  लख सो  सोई 
उर धारे बृजधर.... घट घट  उ धरे
ई धरे ?  उ धरे ?..सो . घट घट खोई ,,,,''तनु ''

''शब्द शक्ति ''
काव्य शास्त्र में शब्द शक्ति उसे कहते हैं जो शब्द के उच्चारण के  साथ - साथ उसके अर्थ  को भी बताये … शब्द शक्ति के तीन भेद हैं ----
अभिधा
लक्षणा
व्यंजना

सामान्यतः जब हम किसी शब्द का प्रयोग करते हैं तो वह शब्द उसकी भाषा लोक प्रचलन में उसकी प्रसिद्धि और उस भाषा के कोष में उसके अर्थ को प्रकट करती है जैसे वानर , तोता , बालिका, गुलाब , लोटा इत्यादि हमें ऐसा अर्थ ''अभिधा शब्द शक्ति'' बताती है इसे हम बचपन में चित्रों के माध्यम से सीखते हैं। अभिधा द्वारा प्राप्त अर्थ एक शब्द का भी और एक वाक्य का भी हो सकता है।  ये भी हमने बचपन में भाषा ज्ञान के समय चित्र के माध्यम से सीखा है,.......   जैसे कुत्ता रोटी खा रहा है,.......  वह जा रहा है,………  बन्दर पेड़ पर बैठा है.

जब हम लक्षणा की बात करते हैं तो इस शब्द शक्ति का अर्थ पू रे वाक्य के बीच रखे गए एक शब्द के अर्थ को ग्रहण करने हेतु किया जाता है ''जैसे शिक्षक ने कक्षा में किसी छात्र को कहा ''तुम बैल हो '' यदि बैल का अर्थ अभिधा शब्द शक्ति से लें तो कक्षा में कोई पशु है ही नहीं तो फिर शिक्षक ने छात्र को बैल क्यों कहा ? यहाँ  हम लक्षणा  की सहायता से अर्थ करें तो लक्षण हैं बैल की तरह मंदमति होना छात्र का यह गुण बैल की तरह मंदमतित्व पर निर्भर है दैनिक व्यवहार में हम किसी मनुष्य को  गाय,  कुत्ता , कौव्वा , पत्थर,  देवता बना देते हैं।
जब लक्षणा का प्रयोग  सम्पूर्ण वाक्य या वाक्यांश का अर्थ ग्रहण  करने लग जाए तो हम उसे ''मुहावरा'' कहते हैं जैसे लम्बी जीभ ,हाथ खुला होना , कान  का कच्चा होना। ………… एक एक शब्द का वाक्य विस्तार होता है और कई मुहावरे बन जाते हैं केवल एक शब्द आँख को ले लीजिये इस एक शब्द के न जाने कितने प्रसिद्ध मुहावरे हिंदी में  हैं। …

जब हम व्यंजना शब्द शक्ति की बात करते हैं तो यह जान लेना आवश्यक है कि इस शब्द शक्ति का चमत्कार न तो एक शब्द में निहित है और न ही एक वाक्य में यह अर्थ सन्दर्भ पर  निर्भर करता है जैसे किसी ने एक वाक्य कहा ''दिन छिप गया ''अलग अलग सन्दर्भों में इस एक वाक्य के अलग अलग अर्थ ध्वनित होंगे साधु  के लिए अलग, चोर के लिए अलग, इस प्रकार की उक्ति के चमत्कार को ''वक्रोक्ति ''  कहा गया है.व्यंजना से निकले अधिकांश अर्थों को व्यंग्यार्थ कहते हैं, काव्यशास्त्रियों के मत से व्यंजना शब्द शक्ति पर निर्भर ध्वनि काव्य को उत्तम और श्रेष्ठ काव्य माना  गया है।

Saturday, December 6, 2014

चित्रकार चित्र में मोहन को लाय के !
तीन रूप वारै विष्णु को दिखाए हैं  !!
कमल आसन है देवी लक्ष्मी को !
इस हेतु पगनख चित्र में उघारे हैं !!
पंकज कर में सुशोभित है शारदे को !
बुद्धिभ्रम न हो अवतंस बीच मोर पंख धारे हैं!!
तज दम्भ मोछन दई  मानुषं कूँ ईश्वर ने !
कृष्ण् वैश्र्वानर जगदीश बन पधारे हैं !! 
गोरो रंग सृष्टि के निमित्त धारे हैं  !
अँधियारो दूर करन को रंग कारे हैं  !! 
कहे तनु व्यक्त अव्यक्त तत्व रूप से !
अक्षर  क्षर और अव्यय को निखारे हैं !! ''तनु ''

मान बहुत है मनुज में, कर के  इसको दूर
हर मन  के प्यारे रहें ,      और बढ़ाएँ नूर  .... ''तनु ''  

Thursday, December 4, 2014

 झाँकने चली 
भव्य अट्टालिकाएँ 
नाजुक कली  

स्वर्ण सुपर्णा
 प्रदूषित संसार
 आस निराश 

विनय प्रीत 
न देना प्रदूषण 
एक गुहार 


आपाधापी और वक्त की कमी के कारण लोगों के पास लम्बी कविताओं के पढने का वक्त नहीं है इसलिए दोहे की तरह मुक्तक भी अधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं.………  मुक्तक काव्य वह रचना है जिसमें प्रबंधत्व का अभाव होते हुए भी रचना कार अपनी रचना शक्ति के सहारे सुन्दर सहज भाषा शक्ति के साथ किसी मनोरम दृश्य, किसी परिस्थिति विशेष घटना या वस्तु का चित्रमय  व  भाव पूर्ण वर्णन जिसमें प्रबंध काव्य सा आनंद आये मुक्तक काव्य कहते हैं। 

मुक्तक  शब्द का अर्थ है ''अपने आप में सम्पूर्ण होना '' अर्थात मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णतः स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है। 

मुक्तक काव्य में छंद की विशेष बाध्यता नहीं होती है यह किसी भी छंद में लिखा जा सकता है लेकिन रचनाकार जिस किसी भी  छंद का चुनाव करे उसका निर्वहन करे। 

सामान्यतः मुक्तक छंद में चार सममात्रिक पंक्तियाँ होती हैं जिसकी पहली दूसरी और चौथी पंक्ति में तुकांत या समान्त होता है जबकि तीसरी पंक्ति  तुकांत नहीं होती है परन्तु जो बात कही गयी है उस कथ्य का उद्वेग अवश्य होता है।

कबीर, रहीम के दोहे मीराबाई के पद्य मुक्तक रचनाएँ हैं रीतिकाल में अधिकाँश मुक्तक रचनाएँ रची गयीं 

आइये समझे मुक्तक कितने प्रकार के होते है। 

विषय के आधार पर मुक्तक को तीन वर्गों में  बाँटा गया है १. श्रृंगार परक 
२. वीर रसात्मक 
३. नीति परक 

स्वरुप के आधार पर मुक्तक को गीत ,प्रबंध मुक्तक , विषय प्रधान ,संघात मुक्तक एकार्थ प्रबध तथा मुक्तक प्रबंध आदि भेद किये जा सकते हैं। 

सम मात्रिक पंक्तियों से हमारा यह अर्थ है कि सभी पंक्तियों में मात्राओं की गिनती समान रहेगी। मात्राओं की गणना का विधान हम पिछले पाठों में समझ चुके हैं। 

तिल ही तो बोये थे !! हुए ताड़ कैसे कैसे ??… २६ 
दिल ही तोड़ने के हुए, जुगाड़ कैसे कैसे ??… २६ 
भाव विहीन चेहरे हैं कोशिशें है नाकाम ,… २६ 
बुत के लिए काटे गए पहाड़ कैसे कैसे ??.... २६ ''तनु '' 

उपरोक्त मुक्तक में प्रत्येक पंक्ति में  २६ मात्रा हैं '' कैसे कैसे ''पहली दूसरी और चौथी पंक्ति में जो तुकांत बन रहा है इसे ग़ज़ल विधा में रदीफ़ कहते हैं तुकांत से पहले काफ़िया आड़, ताड़, जुगाड़, पहाड़ है तृतीय पंक्ति मुकतक का निचोड़ है।