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Tuesday, January 19, 2021

आशियाना पंछियों का, उजाड़ने लगी ये हवा


आशियाना पंछियों का, उजाड़ने लगी ये हवा ; 
झाड़ देगी पत्तियों को, नहीं मानेगी ये हवा!

तिनका तिनका जोड़ कर एक घरौंदा था बनाया;
कैसी जाहिल, फिर दिखा गई बदमिज़ाजी ये हवा!

खौफ़ खाये फूल भी हर, खो गया कलियों का नूर;  
तोड़ती क्यों आबरू है, तूफ़ान बनके ये हवा!

रिस रहे नासूर हैं, ज़ख़्म गहरे होते ही गये;
बनती रही नादाँ कैसी, ख़ंज़र चुभाती ये हवा!

यूँ जहर लहू मत उतारिये  की मर जाऊँगा मैं;
ये फिज़ा सहमी हुई, दहशतगर्द दिखती ये हवा!

पहरे आवाज़ों पर क्यों,   जलते क्यों बेकसूर ये; 
बढ़ आती बवंडरों सी, है भूलभुलैया ये हवा!

टिमटिमाती हुई लौ की, जिन्दगी भी क्या जिन्दगी;
बेसहारा महरूम को, बुझा डालेगी ये हवा!

रौँद डाले कुचल डाले ,   न पता ठिकाना पूछती;
छीन लेती  निवाला  ''तनु''  भूखी सियासी ये हवा!!......  ''तनु'' 

Tuesday, January 12, 2021

धूप थोड़ी मिली मुझे आज है

धूप थोड़ी मिली मुझे आज है ;
दर्द ही गीत है दर्द ही साज है !

ग़ाफ़िल हुआ हूँ हाल से अपने;
गा रहा दर्द, जाने क्या राज़ है !

परिंदों ने दाना चुगा ही नहीं;
बात क्या है? सहमा डरा बाज है !

सूख आँसू, नयन हुए सहरा; 
हालत बुरी है कोढ़ में खाज है!

नाम दाने दाने लिखा ही नहीं;
बोलते हैं, किसान का राज है!

तोड़ते पटरियाँ करें जुल्म भी;
ये निराला नया ही अंदाज़ है!

मानो ख़ैरात में 
मिली जिंदगी  ;
फूटते बूँद बुलबुले आज है !

काश डरते 
तुम, न बुरा करते;
नाम ईश्वर लेते गिरती गाज है?

देखते देखते हुआ पत्थर ;
दिल ''तनु'' वही जिस पर नाज़ है!..  
''तनु''



Friday, January 8, 2021

माँ



मन पीड़ित तन रीतता,  इस दुनिया के बीच ; 
वे ही जन बैरी हुए,       जिनको पाला सींच  ! 

जब जब सुत की सुध जगे, बिसर जाय निज भान ;
नहीं सुध भूख प्यास की,ना सुख दुख को ज्ञान ! 

 मन आशा मेरी पिसी, चकिया के दो पाट ;
अँखियन जल झर झर बहे, देखत सुत की बाट !

सुत बिन जी नाही लगे, पल पल लागे भार ;
पलकों से काँटे चुनूँ  ,   सुत पथ रहूँ निहार !.... ''तनु''








Thursday, January 7, 2021

मैं ज़र्रा हूँ ज़र्रा ही रहने दें;

 मैं ज़र्रा हूँ ज़र्रा ही रहने दें;
वक़्त को अपनी कहानी कहने दें!

वादियों में सदाएँ सदियों से हैं;
बात जहां की उन्ही को कहने दें!

नहीं थमेगी कभी रफ़्तार उसकी;
बहता है वक़्त बेलोस बहने दें!

आग पानी में नहीं लगती कभी;
कोशिशें ये नाकाम हैं रहने दें!

झूठ की बुलंदियाँ रह न पाएँगी;
कुछ साँच की आँच तो सहने दें! 

आह भरने ना दे झिंझोड़ देगा;
चल उसकी नज़ाकतों को गहने दें!

जिन को पता अर्श का, ना फर्श का;
बहुत मासूम हैं न, अभी रहने दें!

''तनु'' इक अना इमारतें चढ़ती गयी;
 कभी गिरा उसे बेख़ौफ़ ढहने दें!... ''तनु''


Tuesday, January 5, 2021

जानते हो जवाब सवाल क्यों रखा है

 

जानते हो जवाब सवाल क्यों रखा है ?
झूठ का ये फितूर पाल क्यों खा है ?

चल नहीं सकते तुम बिना सहारे के;
फंदा आसमान पर डाल क्यों खा है ?

जो सोचा नहीं जुबान पर लाने वाले ;
कह दो दिल में सम्हाल क्यों खा है ?

धीरे - धीरे बदली तो है ये दुनिया ;
अफसाना ज़ेहन में, ज़लाल क्यों खा है ?

आँसूओं और ग़म का हिसाब रखने वाले ;
सलीब उठा कर चल हम्माल क्यों खा है ?

आँख छलकी आदतन ही हँसते - हँसते ;
ख़ामख़ा रुमाल का इस्तिमाल क्यों खा है?

बाग़ आबाद नहीं वीरानी सी कैसी है ?
दोस्त मुनाफ़िक़ हुए हलाल क्यों खा है?

गर जुगनू चराग़ों को मात देने लगे ;
बात ही बात में ''तनु'' बवाल क्यों खा है?...''तनु''.

Saturday, January 2, 2021

तुम ही नहीं आये रोती रही आँखें

 

तुम ही नहीं आये रोती रही आँखें;
यादों का दामन भिगोती रही आँखें!

बाग में कैसी आज ये हवाएँ चली;
आँसू संग हार पिरोती रही आँखें!

जाने किस पथ भटका है लश्कर मेरा;
फिर बीज चाहत के बोती रही आँखें!

आस पर मेरी पाबंदी की बेड़ियाँ;
मैं पगलाया, पगली रोती रही आँखें!

सहरा किसी दिन समंदर हो जाएगा;
बूँद-बूँद दरिया होती रही आँखें!

दरम्यान शामों सहर के एक लमहा;
तनहा थी ''तनु'' ख़ला ढ़ोती रही आँखें! .... ''तनु''