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Friday, October 31, 2014

राम की तरह   

आँसू की एक बूँद के साथ  -- है हँसी का इन्द्रधनुष !
इन्द्रधनुष के रंगों में खो जाता है जीवन का कलुष !
ख़ुशी में न उछलो गगन,यूँ गम में न डूबो दो चमन,
राम की तरह रहो निकालो न कामनाओं का जलुश !!… ''तनु''

महानगर 
शरद की खुली खुली सी शाम  वो !
जेठ की जली जली  सी घाम वो !!
भागना ही जिंदगी है यहाँ की ,
कहाँ ?? सुहानी अवध की शाम वो !!… ''तनु ''

Thursday, October 30, 2014

हँसी तो पाहुनी थी ------  थी कैसे रुकती ?
इन्द्रधनुष की सहेली थी---  कैसे झुकती ??
पल में ही उजड़ गया --- सपनो का जहां,,,,,,
छोड़ गयी रोती अंखियाँ---- कैसे दुखती  !!!.... ''तनु ''
हँसी आकाश की , सितारों में चमकती है !
हँसी सागर के तट   मोती ले बिखरती है !!
सूरज पूछता ? एक किरण देकर धरा को,,,,,
बता हँसी तेरी क्या ओस में दमकती है ??''तनु ''

मित्रों नमन !!!

पाठ :-5  

हम यहां थे……… जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तब भी यही नियम लागू होगा यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो  जायेगी …
समझें  .... 

स्नान  = २,१ 

अब इससे आगे -----

मित्रो नमन !!!हम व्यंजन और अर्धव्यंजन के बारे में जान चुके हैं अब आगे 

हमने जाना जब अर्ध व्यंजन शब्द के शुरू में आता है तो भी यही नियम लागू होता है यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो जाती है उदा -स्नान २,१ 
एक शब्द धर्मात्मा है ये इस प्रकार गिना जाएगा --धर्मात्मा-धर /मात /मा---२,२,२ 
कुछ अपवाद भी---अगर व्यंजन से पहले लघु मात्रिक अक्षर हो पर उस पके ऊपर लघु व्यंजन का भार नहीं पड़ रहा हो तो पहले लिखा गया वर्ण दीर्घ नहीं होगा उदा…… कन्हैया   ……१,२,२ में न के पहले क है फिर भी यह दीर्घ नहीं होगा क्योंकि उस पर न का भार नहीं पड़ रहा है  …

संयुक्ताक्षर जैसे =क्ष ,त्र ,ज्ञ ,ध्द ,द्व, ड्व आदि दो व्यंजनों के योग से बने होते हैं इसलिए ये दीर्घ मात्रिक हैं लेकिन मात्रा गिनती में खुद लघु होकर अपने पहले आने वाले लघु व्यंजन को दीर्घ कर देते हैं या पहै का व्यंजन स्वयं दीर्घ हो  स्वयं लघु हो जाते है
 आइए समझें ....... 
पत्र =२,१ 
वक्र =२,१ 
मूत्र =२,१ 
शुद्ध =२,१
क्रुद्ध =२,१ 
यज्ञ = २,१ 

यदि संयुक्ताक्षर  शब्द शुरू हो रहा हो तब संयुक्ताक्षर लघु हो जाते हैं। …
आइए समझें .... 
त्रिशूल = १,२,१ 
क्रमांक = १,२,१ 
क्षितिज = १,१,१ 
व्यंजन स्वयं दीर्घ हो तो भी दीर्घ स्वर युक्त संयुक्ताक्षर दीर्घ माने जाते हैं 
आइये समझें .... 
प्रज्ञा =२,२ 
राजाज्ञा =२,२,२ 
सबके समझ में आसानी से आ जाए इसलिए ये लेख.…  ''मात्रा गणना विधान'' अति सूक्ष्म रूप में प्रस्तुत किया है। …
… 
अब कुछ शब्दों की मात्रा देखते हैं 
 छंद = २,१
 विधान =१,२,१ 
 तथा = १,२ 
 सयोग = २,२,१ 
 निर्माण =२,,२,१ 
 सूत्र =२,१ 
 समझना =१,१ ,१,२,
 सहायक =१, २,१,१ 
 चरण=१,१,१ 
 अथवा= १,१,२ 
 अमरत्व १,१,२,१

''मात्रा  गणना  विधान ''   के  अपवादों पर अगर कोई कुछ कहना चाहे तो पाठ बनाकर प्रेषित कर सकता है क्योंकि ये बहुत विस्तृत विषय है


मैं बेटी बन 
दुर्गा बन गयी हूँ 
शरण माँ की …

आभारी हुई 
धन्य भाग हमारे 
स्नेहसिंचन 

संस्कार नहीं 
आत्म मंथन नहीं 
सब है खोया ''तनु ''

Wednesday, October 29, 2014

जाने कुटिल सी क्यों हँसी आज तुम्हारी है,
बात की बात न , यूँ बनी बात तुम्हारी है !
करो मर्सिया ख्वानी तुम जिगर पे रख पत्थर ,
हूँ नाशाद !!! जो खूं सनी रात तुम्हारी है !

यूँ बेपरवाह जिंदगी न जियो लानत है ,
जानते नहीं उसूलों की भी कीमत है !
उसूलों से तुम्हारी मुस्कान मुस्कान है,
नहीं तो जिंदगी में लग जाती दीमक है !!

कोई जब पास होकर भी पास नहीं ,
हंस लो अपने पर तुम भी खास नहीं !
राह में जिसके भटकना ही लिखा हो ,
मंज़िल उसकी पास होकर भी पास नहीं !

घबरा के मर जाना  इतना आसान नहीं !
हर जगह मिलता ये मौत का सामान नही!!
काश वो हँसके  कहते के  मैं तुम्हारा हूँ ,,,,,,,
फिर मिलता या मिलता उनका दामान नहीं !!!

ये मुश्किल की घडी है हमें हंसी नहीं आती !
अब याद तुम्हारी मेरे दिल से नहीं जाती !!
कहो कहाँ जाके अब ये दिल की कहूँगा मैं ! 
बिन  तुम्हारे कोई सूरत नज़र नहीं आती !!.... ''तनु ''





हँसी  /  मुस्कान


चिड़ियों का गीत सुन, चहचहाने की ज़रूरत है !
ले कोयल की कुहू ,  गुनगुनाने की ज़रूरत है !!  
सारे गम भुला के गोदी  माँ की आ सो जाओ  ,,,,,
मुस्कान काफी नहीं खिलखिलाने की ज़रुरत है !


तितली !!! औ भौंरे फूलों की हँसी सी देखते हैं !
होठों की एक हँसी  दिल की ख़ुशी सी देखते हैं !!
रौनक नहीं है ज़माने में क्यों अब तुम्हारे बिना ,,, 
नहीं हर्फ़ !!! कागज़ को!!! या फिरी मसि सी देखते हैं 


मुस्कान लबों पे ले आई वो यादों की हिलोर थी !
हँसाती चल रही साथ मेरे ---वो सिंदूरी  भोर थी !!
पलों की हंसी पलों के आँसू क्या गुज़रा क्या जानूँ ,,,
जो उड़ चली संग पतंग के वो आशाओं की डोर थी !!!.... ''तनु ''






Monday, October 27, 2014

मित्रों नमन ……

पाठ :-4 

कल हमने स्वरों के बारे में समझा…… आज की अगली कड़ी में हम शुरू करते हैं मात्रा से,


मात्रा  :- यदि हम स्वर और व्यंजन की मात्रा को जाने तो   अ,  इ, उ स्वर  एक मात्रिक होते हैं  ……

क से ह  तक के सारे व्यंजन एक मात्रिक होते हैं.....  क से ह तक के व्यंजनों में इ ,उ स्वर जुड़ जाए यानि  छोटी इ की मात्रा छोटे उ की मात्रा जुड़ जाए तो भी अक्षर एक मात्रिक  ही रहते हैं … अर्धचन्द्राकार बिंदी युक्त स्वर तथा व्यंजन एक मात्रिक होते हैं …… 

समझें  … 

कुमकुम = १,१,१,१ 
हँस = १,१  अमल = १,१,१ 
चल = १,१ 
अनहद  १,१,१,१ 
 इति  १,१ 
अनवरत १,१,१,१,१  
विष = १,१
जब किसी वर्ण के उच्चारण में हस्व से अधिक समय लगता है तो उसे दीर्घ वर्ण मानते हैं तथा उसकी गिनती दो मात्रा में होती है जैसे ''आ'' ये 2 मात्रिक है …

आ ,ई, ऊ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ ,अं अः ये स्वर दीर्घ मात्रा  हैं अर्थात इनकी गिनती २ मात्रा की होगी ,
अब क से ह तक के व्यंजनों में उपरोक्त स्वर यदि जुड़ते हैं तो इनकी गिनती दो मात्रा की हो जायेगी ,
उदाहरण के लिए यदि क व्यंजन में आ ,ई, ऊ ,ए ,ऐ ,ओ ,औ , अं अः ये स्वर जुड़ें तो मात्रा दो की होगी  जैसे ---- का की कू के कै को कौ कं कः …………
संयुक्ताक्षर जैसे क्ष, त्र , ज्ञ ये भी दो मात्रा के होते हैं ,
अनुस्वार (ंं) तथा विसर्ग (:) युक्त स्वर और व्यंजन भी दो मात्रा के होते हैं  .... 

समझें.... 


मा  २ 

माता २२ 
लाएगा २२२ 

अब हम ये जानने की कोशिश करें की यदि अर्धव्यंजन हो तो उसकी मात्रा की गिनती कैसे हो?


आइये समझें  …… 

अर्धव्यंजन एक मात्रिक होता है परन्तु  स्वतंत्र रूप में वह लघु नहीं होता  यदि अर्धव्यंजन के पहले लघुमात्रिक अक्षर है तो उसके साथ जुडेगे और दोनों मिलेंगे और दीर्घ मात्रिक हो जायेंगे। 
जैसे कथ्य ---
क = १      
थ = आधा = १  मात्रा
य = १ 
कथ्य २,१ मात्रा 
इसके और उदाहरण देखें 
सत्य  = २,१ 
ह्त्या  = २,२ 
मृत्यु  = २,१ 

मान लीजिये पूर्व का अक्षर दीर्घमात्रिक है तो यहाँ पर लघु की मात्रा लुप्त हो जायेगी....... 

आइये समझें  …… 

आत्मा   = २,२ 
महात्मा =  १,२,२ 

जब अर्ध व्यंजन शब्द के प्रारम्भ में आता है तब भी यही नियम लागू होगा यानि अर्धव्यंजन की मात्रा गुम हो  जायेगी …

समझें  .... 

स्नान  = २,१ 

मैं आशा करती हूँ कि ये लेख आपके काम आएगा इसकी त्रुटियाँ या अगर इसमें कुछ और जो मात्राओं की गणना से सम्बंधित हो जोड़ना चाहते हैं , तो अवश्य कहें मैं जानना चाहूँगी …









मित्रों  नमन ......

पाठ 3 :-
जैसा कि  बहन दीपिका जी और परिवार के अन्य सदस्य भी ये चाहते हैं कि  छंद रचना से पहले सदस्यों का परिचय  छंद शास्त्र की मूलभूत बातों से हो। 

कोई भी काव्यात्मक रचना जो निश्चित मात्रा संख्या या निश्चित मात्रा पुंज (गण )  या निश्चित वर्ण संख्या के आधार पर आधारित  हो  छंद कहलाती है और यही काव्यात्मक रचना कविता कहलाती है।
इस प्रकार छंद की परिभाषा ये बनी ………………  

'''''''मात्रा , वर्ण की रचना , विराम गति का नियम और चरणान्त में समता जिस कविता में पाया जाए वही छंद है यानि  उसी को छंद कहते हैं ''''''''



छंद  की रचना करने के लिए यह जरुरी नहीं कि आप बहुत बड़े छंद शास्त्री हों पर मूलभूत बातों को जानने के लिए जिस छंद की रचना हम करने जा रहे हैं उसके मूल विधान को जानना ज़रूरी है।  

लीजिये जी हम शुरू से शुरू करते हैं

 वर्ण
वर्ण दो प्रकार के होते हैं 
१- हस्व वर्ण 
२- दीर्घ वर्ण 

१- हस्व वर्ण -
 हस्व वर्ण को लघु मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में १ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "|" है|   


२- दीर्घ वर्ण -
 दीर्घ वर्ण को गुरू मात्रिक माना जाता है और इसे मात्रा गणना में २ मात्रा गिना जाता है तथा इसका चिन्ह "S" है
 


चूँकि अब तक हिन्दी छंद समूह में छंद पर ऐसा कोई लेख नहीं है जिसमें छंद के मूलभूत तत्वों पर विस्तृत चर्चा हुई हो  गौरतलब है कि मेरा ये दुस्साहस भरा कदम होगा क्योंकि मैं स्वयं भी हिन्दी  छंद की मूलभूत बातों से ही परिचित हूँ अतः  कोई चूक मुझसे अगर हो जाए तो अग्रजों से सुधीजनों से सहयोग की अपेक्षा है।  


















Sunday, October 26, 2014


उड़ा रही 
हँसी 
कल
हमारे कल 
की 
कर रही 
थी 
इज़ाफ़ा 
चीनियों की
बही में 

Saturday, October 25, 2014

चांदनी रात है लो फिर हुआ     चाँद का जिक्र है !
खुश हूँ के उदास हूँ तेरे मेरे अरमान का जिक्र है !!

चाँद सर पर  तो  कभी काँधे पे बैठा होता है !
कदमो में न उतर आये इसी की तो फ़िक्र है !!

रोज़ आता है वो और खुशियाँ बिखेर जाता है !
जानता हूँ मेरे जीने की उसको ही तो फ़िक्र है !!.... ''तनु ''


नमन मित्रों !!!

पाठ :-2 

 कल मैंने आपको दोहे की रचना कैसे करनी ये जानकारी दी.… आज मैं आप सबको कवित्त क्या है……  के बारे में बताऊँगी और  इसे कैसे रचा जाता है ये समझाऊँगी,,,,, आशा है इसे आप सब ध्यान से समझेंगे। 

तो सबसे पहले हम कवित्त की परिभाषा जानेंगे …

परिभाषा :-   ''''कवित्त एक प्रकार का छंद है। इसमें  चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16  15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं प्रत्येक चरण के अंत में ''गुरु''वर्ण होना चाहिए।  छंद  की गति को ठीक रखने के लिए 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर ''यति ''रहना आवश्यक है।''''

इसमें लघु गुरु का कोई क्रम नियत नहीं है किन्तु वाचन को सहज और सरल रखने के लिए तकरीबन सभी कविगण लघु गुरु से पद का अंत करते हैं। 

एक तथ्य ऐसा है जिस पर अमल किया जाए ''''''गुरु गुरु गुरु ''''''से पदांत न हो।  ऐसा होगा तो जब हम कवित्त पढ़ेंगे तो लय भंग होगा । …… 

कभी कभी चरणो के वर्ण की गिनती के अनुसार  8 ,7, 9, 7  …हो सकती है।  ये दोष वैधानिक नहीं क्योंकि इससे छंद के गायन वाचन में कोई मुश्किल नहीं आती है यानि  वाचन में प्रवाह अवरुद्ध नहीं होता। 

ऐसा भी देखने में आता है कि  16 ,15 की यति भी 17,  14 या  15, 16  की व्यवस्था लिए हो सकती है। 


उदहारण :-
आते जो यहाँ हैं ब्रज भूमि की छटा को देख ,
नेक न अघाते होते मोद - मद  माते हैं।। 
जिस ओर जाते उस ओर मन भाये दृश्य ,
लोचन लुभाते और चित्त को चुराते हैं।।
पल भर अपने को वे भूल जाते सदा ,
सुखद अतीत सुधा - सिंधु में समाते हैं।।
जान पड़ता है उन्हें आज भी कन्हैया यहाँ ,
मैया मैया , टैरते हैं  गैया को चराते हैं। …अज्ञात

Friday, October 24, 2014

नमस्कार मित्रों,  एक प्यारी पेशकश !!!

पाठ :-1  दोहा क्या होता है ?

मित्रों दोहा एक मात्रिक छंद है क्योंकि इसमें मात्राओं की संख्या निश्चित होती है ,,,,

क्या आप जानते हैं कि दोहा कैसे लिखा जाता है ??  ,,,,, दोहा मात्रिक छंद होता है दोहे के चार चरण होते हैं इसके विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय ) चरणों में १३ -१३ मात्राएँ और सम चरणो में ११ - ११ मात्राएँ होती हैं सम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा  का होना आवश्यक  होता है ,,,,,,,

उदाहरण के लिए देखिये :---

तुलसी मीठे वचन ते , सुख उपजत चहुँ ओर !
वशीकरण एक मन्त्र है,   परिहरु वचन कठोर !!


 112       22    111    2  --------मात्रा 13
तुलसी   मीठे  वचन  ते--------प्रथम चरण 

  11    1111     11   21    ---------मात्रा 11  
सुख  उपजत  चहुँ  ओर--------द्वितीय चरण 

   12111     21     11      2--------मात्रा 13
वशीकरण   एक   मन्त्र   है------ तृतीय चरण 

 1111       111      121------------मात्रा 11 
परिहरु   वचन    कठोर--------चतुर्थ चरण 

अब मैं  आपको बताती हूँ कि लघु और गुरु मात्रा क्या होती है :--

१ ---- लघु ---- अ, इ, उ, ऋ, क, कि, कु, कृ
२ ----- गुरु -----  आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, का, की, कू, के, कै, को, कौ

एक बात और ध्यान में रखने की है कि पहले तीसरे चरणों के आरम्भ में १२१(जगण ) मात्रा और दूसरे और चौथे चरण के अंत में लघु होना चाहिए …… 

कितना आसान है न दोहे बनाना तो इंतज़ार किस बात का---- लीजिये कागज़ कलम और शुरू हो जाइए  …… :)






भाई   /  भ्राता


चाँद से चमकते हो ज़माने का नूर हो !!!
दुआएं हैं मेरी  आज बहुत मशहूर हो !!!
मुझे भूल जाओ भाई न भूलो माँ को ,,,,,,  
दूरियाँ हैं आज पास होकर भी दूर हो !!!*.... ''तनु ''


हर बहन का सपना यूँ -- छोटा सा ही होता है !!!
पिता भाई के साये -----  सोया सा ही होता है !!!
जुनून उसी का होता है पूरा करने के लिए ,,,,, 
वरना हर ख्वाब उसका खोया सा ही होता है …''तनु''  


संसार की हर बहना यमुना रानी का रूप !!!
करती नेह की छाया कितनी कड़ी हो धूप !!!  
जग में सदा पावन है भाई बहन का नाता ,,,,
ईश्वर का प्यार बरसे इस पर ना हो अरूप …''तनु ''




दिवाली की सौम्य भव्यता के बाद आई है ------- निराली भाई दूज !!!
पांच पर्व पावन दिवाली के बाद यमुना ने  --------- मनाई भाई दूज !!!
भाई बहन का प्यार और  भाई की लम्बी उम्र की कामना लेकर ,,,,,,,,,,,,,,,
रिश्ता प्यारा सा द्वितीया पक्ष शुक्ल मास कार्तिकी लाई भाई दूज !!!…… ''तनु '' 

सर पे ,...  अपने चाँद उठाए चलते हैं ,
अपने काँधे ,..  चाँदनी उठाए चलते हैं !!

दर्द सीने में है ,... जुबां  कुछ नहीं कहती ,
अपनी पलकों पे, आँसू सजाये चलते हैं !!

बिखरी सी है जिंदगी हर कदम बेदम ,
क्यों हथेली पे  , सरसों जमाये चलते हैं !!

गैर के पासों पर गैरों ही की चाल रही  ,
अब तो गैरों पे जिंदगी लगाए चलते हैं !!

ख़ुशी की दुनिया है,,  है ख़ुशी खोई अपनी ,
ज़ख्म जिंदगी पे ,… नमक बिछाये चलते हैं 

उम्र का भरोसा क्या दिन भी काटे न कटे ,
तनु तू है बोझ  तुझे क्यों उठाये चलते हैं. !!.... ''तनु ''…








Wednesday, October 22, 2014

दिवा तो बरे  हे पण आज मनड़ो बरी उठ्यो !
वदळती दुनिया में ---जीव आह भरी उठ्यो !!
हगरा के हे ऊ कीड़ी ने कण ने हत्थी ने मण दे  ,,,,,,
तूंज देख ऊपर वारा मु घडी घडी पड़ी उठ्यो !!! ,,,,, ''तनु '' 

Tuesday, October 21, 2014

दीप ज्ञान का
सजाता आखर है
सीप में मोती

काग़ज़ पात
लिखी हुई कहानी
कहता  सुन..... ''तनु ''

ज्ञान झरोखा
पात पात दर्शायी
जीवन ज्योति

पुस्तक रत्न
ज्ञान दीप सहेज
बुझने न दे


Monday, October 20, 2014

दीपपर्व की मंगल कामनाएँ  !!!...........


खातिर राष्ट्र के एक दीप जलाया !
नाजुक बाती है  सौम्य उजाला है !!
सभी के मन को है बरबस लुभाया !
खातिर राष्ट्र के एक दीप जलाया !!

जन जन के मन का अन्धेरा भगाओ !
ऐ दीपक शांत भाव से मुस्कुराओ !!
सीमा के रक्षक  तैनात सैनिको में !
राष्ट्र रक्षा प्रेम का जोश भर जाओ !!

झिलमिल पर्व की मिल खुशियाँ मनाएँ !
नारी शक्ति को एकजुट कर लाएँ !!
दिवाली में लक्ष्मी लक्ष्मी पूजन हो !
कोई औरत दुःख में न आँसू बहाए !!               

अनंत निर्मल शुभ गुणों की दिव्यता से !
मिल पर्व श्रृंगार मनाएँ  नित श्री जगाएँ !!
सौंदर्य संसार का खिलखिला जाए !
आओ आँगन में दिल नहीं दिये जलाएँ !!

किसी मुख से अन्न का कौर न छीने !
दर्द मिटा आँसू  पोंछ गरीबी बीने !!
सुख और समृद्धि आये छन छन !
छन छन चाँदनी से धीमे धीमे धीमे !!!,,,,,,''तनु '' 




दिवारी रा हायकु .......



नानों दिवाण्यो !!! 

आसा भरी निजरां ,,
उजारे वाट !!!

बेना आवो नी !!!  
परबात्या उगेरो  !!!
मंगल आस ,,,

ई भितां  के हे !!!
मनड़ा री खुसी हे !!!
असगुन नि ,,,

रूपारा दन !!!
म्हे मांडीऱ्या माण्डणा  !!! 
दिवारी अई ,,,

दिवा बारांगा !!!
धनरी वरसात !!! 
वेगा आँगणे ,,,

ववां मांडे हे !!!
माण्डणा आँगण में !!!
तेवार आयो ,,,''तनु ''

Sunday, October 19, 2014



जीवन गीत 
तुझे बिन सुनाए 
गाया न गया.... ''तनु ''

फंसे पांडव 
कौरवों के दलदल 
लुटी द्रौपदी ,,,,,,''तनु ''






दीपमाला  


झिलमिल झिलमिल जग निहारती प्यारी दीपमाला !
मन खुश कर  देती  जगराती ------ प्यारी दीपमाला !!
लौ हार पहन राह निहारती--------- प्यारी दीपमाला !
चाँद उजाला ले उजराती ------------प्यारी दीपमाला !! …'' तनु ''


जो जलकर ही जाज्वल्यमान  हो !
दीप जिस पर मान अभिमान हो !!
खो जाए तिमिर--- नाशवान हो !
दीप तुम पूजित हो--- महान हो !!.... ''तनु ''
हीरक माला  गले में पहनते है------- पर दिल हीरे सा नहीं !  
समंदर में जहाज़ चलते हैं उनके पर दिल समंदर सा  नहीं !!
सही कहते हैं , हर जो चमकता  है वो सोना नहीं होता  !!! 
सुनों सोने की खदानें हैं उनकी ----   पर दिल सोने सा नहीं ,,,,,,,,,''तनु ''
इस विशाल उदधि के उदर में ना कोई सुन्दर लोक !
नहीं  मणियों के मंदिर सुन्दर ना कोई लोक आलोक !!
ज़हरीली ज़मीन  आकाश है  ---  विषमय मंडल सारा !!!
कौन सजाएगा भूमण्डल  ---------  करे दूर सारे शोक,,,,,,,,,''तनु '' 

खिलता है फूल उपवन  से महक आती है ! 
शंख सीपियों की समंदर से झलक आती है  !!
क्या वह  मानव हो तुम ??? क्या ईश्वर पुत्र हो तुम ??
क्यों नहीं ईश्वर की तुमसे झलक आती है ,,,,,''तनु ''
   

Saturday, October 18, 2014

समुद्र है पर सीप नहीं 
 उजाले हैं पर दीप नहीं 
 हरियाली नज़र आती तो है 
 पंछी है पर द्वीप नहीं ''तनु ''
गोरैया …

पहले कभी घरों में दिखती थी गौरैया

अब भी कहीं घरों में दिखती है गौरैया !!

सीमेंट टावरों के जंगल बढ़ जाने से , 


शायद ही अब तो कहीं दिखेगी गौरैया !! 


तस्वीर  पीछे, घरौंदा बनाती गोरैया ! 

तिनका तिनका चुना  घर बनाती गोरैया  ,

शोरगुल कितना चुन चुन कितनी चहचहाह  !!! 

हाँ कभी थी जब तू घर बनाती गोरैया  ,  

 जैसे बचपन गया   तुम गयी गोरैया  !  

शायद तितली  संग छुप गयी है गोरैया. 

नन्हा बुलाता तू अब तो सुन ले री चुन चुन !! 

हम  इंतज़ार करें क्या आयेगी गोरैया ??? 

साथ किसके नन्हा खेले  बता न गोरैया ??

फुदकता चहकता  प्यार खिलौना गौरैया 

पहली किरण का सन्देश अब कौन लाएगा ???

प्रातः  प्रातः  की बात में अन्धेरा ----  गोरैया ,,,,,,''तनु ''