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Sunday, December 9, 2018

हिम बीज बोइये



शिशिर की शीत घनी, गए हैं सिकुड़ दिन, 
बहुत बड़ी रैन है, मुँह ढाँक सोइये..  
शरारती हवा हुई,  रही है चुभाय पिन, 
किरण मोती धूप में, गिन गिन पोइये..  
ठिठुरती रात गयी, भोर किरण ग्वालिन,  
लेकर के ओस चली,  अँचरा भिगोइये..  
दाँतों की किट किटर, सन्नाटों के पल छिन, 
गाँव में जमाव बिंदु, हिम बीज बोइये .. ''तनु''

Saturday, December 8, 2018

मिटटी मेरी

मिटटी मेरी आज मुझसे, बात करने पर अड़ी है ;
और ज़िद उस पर कुम्हार की, थाप करने पर अड़ी है !

रूप कितने रंग कितने बिखर बिखर निखरी हुई ;
वक़्त से सँवरी मिटी, फिर रात करने पर अड़ी है !

सूरज चमका तप गयी चाँद दमका चमक गयी ;
चाँदनी में मिटटी की गुड़िया घात करने पर अड़ी है !

 तेज़ चलती आँधियों  में रेत उड़ती जायगी अब  ;
तब तो गल के मानेगी बरसात करने पर अड़ी है !

गोद खेले कल्प तो  रूठ कर के बंजर बन जाती ;
ज़लज़ला पलना झुलाती ज़ुल्मात करने पर अड़ी है !

उसमें  स्वर है साज उसमें अनहोनी होनी भी वो  ;
'तनु'  झगड़ा किसलिए, ये बात करने परअड़ी है !... ''तनु'' 

वो


वो कमा कर लाती है !!
क्यों न किसी को भाती है ,....
आह!! वो बिना मोल बिकी
रोटियों से ज्यादह सिकी ,

उठ तारों की छाँह चली ,
भिनसारे ही करम जली
दोपहर तक टूटे कमर
धूप देखे बुझती नजर,
नज़र हर घडी, ..  घडी टिकी
आह!! वो बिना मोल बिकी, ,,

धो सबका मैला गंदा ,
बर्तन आँगन औ कंथा ,
शाम ढले  बने  तंदूर ,
श्राप ताप बना सिंदूर ,
कंगना महावर टीकी
आह!! वो बिना मोल बिकी, ,,

लाल संग , ,,,, लाल का काम
काल संग , ,,, काल का काम
रिश्ता है या व्यापार
औरत ?? अनोखा संसार
बात बताना ना जी की, ..
आह!! वो बिना मोल बिकी , ,,

दर्द की बात कौन कहे ?
आँसू आँख से मौन बहे ,
कैसा उसे वेतन मान , ,,
मुफ्त का जानता जहान
देखें घूरें जहाँ दिखी ,..
आह!! वो बिना मोल बिकी। ....  ''तनु''