मिटटी मेरी आज मुझसे, बात करने पर अड़ी है ;
और ज़िद उस पर कुम्हार की, थाप करने पर अड़ी है !
रूप कितने रंग कितने बिखर बिखर निखरी हुई ;
वक़्त से सँवरी मिटी, फिर रात करने पर अड़ी है !
सूरज चमका तप गयी चाँद दमका चमक गयी ;
चाँदनी में मिटटी की गुड़िया घात करने पर अड़ी है !
तेज़ चलती आँधियों में रेत उड़ती जायगी अब ;
तब तो गल के मानेगी बरसात करने पर अड़ी है !
गोद खेले कल्प तो रूठ कर के बंजर बन जाती ;
ज़लज़ला पलना झुलाती ज़ुल्मात करने पर अड़ी है !
उसमें स्वर है साज उसमें अनहोनी होनी भी वो ;
'तनु' झगड़ा किसलिए, ये बात करने परअड़ी है !... ''तनु''
रूप कितने रंग कितने बिखर बिखर निखरी हुई ;
वक़्त से सँवरी मिटी, फिर रात करने पर अड़ी है !
सूरज चमका तप गयी चाँद दमका चमक गयी ;
चाँदनी में मिटटी की गुड़िया घात करने पर अड़ी है !
तेज़ चलती आँधियों में रेत उड़ती जायगी अब ;
तब तो गल के मानेगी बरसात करने पर अड़ी है !
गोद खेले कल्प तो रूठ कर के बंजर बन जाती ;
ज़लज़ला पलना झुलाती ज़ुल्मात करने पर अड़ी है !
उसमें स्वर है साज उसमें अनहोनी होनी भी वो ;
'तनु' झगड़ा किसलिए, ये बात करने परअड़ी है !... ''तनु''
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