स्मृतियों के हार पहन, मौन हो गयी देह ;
अब तो इस संसार से, मुक्ति धाम की गेह !
तन पीड़ित मन रीतता, इस दुनिया के बीच ;
बरसों बरस लगा रहा, इस दुनिया से नेह !
कहाँ मिला था आसरा, यहीं कहीं है स्वर्ग ;
अब दुख का क्या काम है, बरसा हो जब मेह!
अनुभव की खेती हुई, फसल हुई भरपूर ;
जीवन संध्या काल है, उमर बन गयी खेह !
अनुभव की कीमत बहुत, इस दुनिया के बीच;
चाँदी जैसे केश हैं, उर दरिया है नेह !
जिनका नव संसार है, जीवन जिनका फूल ;
मुदितमना विहसित रहें, कभी नहीं हो छेह !.... ''तनु''
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