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Sunday, December 20, 2020

अब तो इस संसार से, मुक्ति धाम की गेह !

 स्मृतियों के हार पहन, मौन हो गयी देह ;

अब तो इस संसार से, मुक्ति धाम की गेह !


तन पीड़ित मन रीतता, इस दुनिया के बीच ;

बरसों बरस लगा रहा, इस दुनिया से नेह !


कहाँ मिला था आसरा, यहीं कहीं है स्वर्ग ;

अब दुख का क्या काम है, बरसा हो जब मेह!


अनुभव की खेती हुई, फसल हुई भरपूर ;

जीवन संध्या काल है, उमर बन गयी खेह !


अनुभव की कीमत बहुत, इस दुनिया के बीच;

चाँदी जैसे केश हैं, उर दरिया है नेह !


जिनका नव संसार है, जीवन जिनका फूल ;

मुदितमना विहसित रहें, कभी नहीं हो छेह !.... ''तनु''





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