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Wednesday, February 25, 2015

तबियत मेरी नासाज है जाने खुदा क्या चाहे है ;
घुट रही  मेरी आवाज है जाने क्या खुदा चाहे है !

सदा एक बदली हज़ारों आवाज़ - ए  - बाज़गश्त में ;
शीशे के मुक़ाबिल शीशा है हज़ारों बाँह पसारे है !

जर्द  पत्ता जो उड़ कर चला  सर्द हवाओं में ;
नमी शाख की बेकस औ ज़मी भी पुकारे है !

बेनाम जुस्तजू है तनहा  छुपी सी जेहन में ;
कोई इधर बुलाये है ''तनु '' कोई उधर पुकारे है !… ''तनु ''



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