कमसिन किरणें हैं खड़ी, ठिठुरे उनके पाँव !
आग तापती रैन है, अब ना भाये छाँव !!
दिन सिकुड़े छोटे हुए, कौन खा गया धूप !
तन गहरी सुइयाँ चुभे, शीत दिखाये रूप !!
कोहरे की चादर में, धुंधला गयी भोर !
रवि रथ के सगरे अश्व, हुए बहुत कमजोर !!
हिमालय की अटारियाँ, उतरे सफेद हंस !
हिम के पाखी सो रहे, पंख हो गये नंस !!
किरणों से दिन बुन रहा, धर कर अनगिन रूप !
मोती चुनता ओस के, सूरज भूप अनूप !!... ''तनु''
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