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Monday, November 26, 2018

कमसिन किरणें




कमसिन किरणें हैं खड़ी, ठिठुरे उनके पाँव !
आग तापती रैन है,       अब ना भाये छाँव !!

 दिन सिकुड़े छोटे हुए, कौन खा गया धूप !
 तन गहरी सुइयाँ चुभे, शीत दिखाये रूप !!

कोहरे की चादर में,   धुंधला गयी भोर !
रवि रथ के सगरे अश्व, हुए बहुत कमजोर !!

 हिमालय की अटारियाँ, उतरे सफेद हंस !
 हिम के पाखी सो रहे,  पंख हो गये नंस !!

 किरणों से दिन बुन रहा, धर कर अनगिन रूप !
 मोती चुनता ओस के,          सूरज भूप अनूप !!... ''तनु''


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