वो भी पल गुज़र गए जो मुश्किल के थे ;
मिला न कुछ जिंदगी निहां मंज़िल के थे !
मिला न कुछ जिंदगी निहां मंज़िल के थे !
ख़्वाब टूटे हैं, परेशान रहा हूँ मैं ;
भूलता हूँ कि तसव्वुर इसी ग़ाफ़िल के थे !
इस अधूरी जिंदगी के सदके चला हूँ ,
कभी संग मेरे कुछ क़दम क़ामिल के थे !
शक कहाँ है दर्द की दौलत मिली है ;
फैसले कहाँ, अब गुनाह भी आदिल के थे !
इन सबूतों से अभी कुछ भी नहीं साबित;
बंजर ज़मी में पाँवों के निशां बादल के थे !
लिख गयीं कितनी किताबें तदबीर की ;
उनमें लिखे नक़्ली हरफ़ फ़ाज़िल के थे !
छोड़ तमन्नाओं का दामन 'तनु' है वहम ;
चाँद गढ़ते हाथ भी कहीं क़ातिल के थे !...... ''तनु''
No comments:
Post a Comment