मैंने झूठी कसमें खायी, ईमान तो गया;
बुराइयाँ तू मेरी खासी पहचान तो गया !
क्या छुपाऊँ राज़ सभी बेपर्दा हो गये;
यूँ जीने की चाहत खोयी अरमान तो गया !
उठने का ताब कहाँ, नहीं झुकने का दम रहा;
मुस्कुराता भी तो कैसे मेहमान तो गया !
मुरझाने लगे हैं फूल भी और चमन रो रहा ;
बहारों को कौन बुलाये बाग़बान तो गया !
नेकी बदी जिसकी 'तनु' हिसाब भी उसी का
नहीं नेकियाँ न रोज़ादार रमजान तो गया !... ''तनु''
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