भाव हीन हिय वीथिका, कलयुगी है उफान !
अभी किनारा दूर है , जागा है तूफ़ान !!
उड़ती सूखी पत्तियाँ, हवा निभाये साथ !
कभी ले जाय दूर तक, कभी छोड़ दे हाथ !!
रीते घट की पीर को , कौन करेगा दूर !
जल बिन जल जल रह गये, सपन हो गये चूर !!
धर्म ध्यान अब गौण है , कदाचार ईमान !
मानव कुत्ता हो गया, योग कर रहे श्वान !!
जीवन इक जंजाल है, उलझ उलझ क्यों रोय !
आप करनी सुधार ले , मन कलुषित को धोय !!
जीवन इक जंजाल है, उलझ उलझ क्यों रोय !
आप करनी सुधार ले , क्यों तू कलुषित होय !!.. ''तनु''
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