घायल मनवा चैन कहाँ, रिसते सगले घाव,
रसना के रस गुम हुए , बैरी मन के चाव!
दिन रुकता न रात रुकी, पल की क्या है बात ,,
कर्मो की बिसात बिछी, अब विधना के गाँव!--''तनु''
रसना के रस गुम हुए , बैरी मन के चाव!
दिन रुकता न रात रुकी, पल की क्या है बात ,,
कर्मो की बिसात बिछी, अब विधना के गाँव!--''तनु''
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