मुट्ठियाँ लहरा कर हवा में लगा रहे नारे हैं;
उम्मीद में अच्छे दिनों की जगा रहे धारे हैं!
उम्मीद में अच्छे दिनों की जगा रहे धारे हैं!
टालते जो हैं सवालों को वो देश के दुश्मन;
दिवस झुलसा जूझती रैना भगा रहे तारे हैं!
खौफ लेकर हम कज़ा का जीते जमाने में;
उठा जनाज़ा कहीं अर्थियाँ सजा रहे सारे हैं!
तू तसल्ली दे, दिलासा दे, और दे दुआ बहुत;
मंज़िल की तरह हादसे क्यों ठहर रहे कारे हैं !
लोग फूलों के जैसे पर क्यों हाथों में है पत्थर;
लेकर मकसद अँधेरे का विधि के रहे मारे हैं!
कब ख़ुशी बाँटोगे तुम सदा ही घर जलाये हैं;
सब जला देंगे हाथों''तनु''जलते हुए अंगारे हैं !.....''तनु''
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