ऐ ख़ुदा तूने इमान क्यों बदला मेरा;
था तेरा ही, सामान क्यों बदला मेरा!
था तेरा ही, सामान क्यों बदला मेरा!
राख में भी सो रही चिनगारियाँ थी;
लम्हा-लम्हा वीरान क्यों बदला मेरा!
ये सन्नाटा था मरासिम, मेहमां नहीं;
आदतन ख़ुश, ज़िन्दाँ क्यों बदला मेरा!
चेहरा यूँ फेर लेना क्या ज़रूरी था;
तू नहीं तो, पासवान क्यों बदला मेरा!
परस्तिश में पारदारी चाहिये क्यूँ ;
इक पल में अरमान क्यों बदला मेरा!
भीगती पलकें यादों की बौछारों से;
ज़मी था आसमान, क्यों बदला मेरा!
फिर वहीं लौट के जाना नहीं है ''तनु'';
रास्ता न था आसान क्यों बदला मेरा!.... ''तनु''
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