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Thursday, June 3, 2021

ऐ ख़ुदा तूने इमान क्यों बदला मेरा

 ऐ ख़ुदा तूने इमान क्यों बदला मेरा;
 था तेरा ही, सामान क्यों बदला मेरा! 

राख में भी सो रही चिनगारियाँ थी;
लम्हा-लम्हा वीरान क्यों बदला मेरा!

ये सन्नाटा था मरासिम, मेहमां नहीं;
आदतन ख़ुश, ज़िन्दाँ क्यों बदला मेरा!

चेहरा यूँ फेर लेना क्या ज़रूरी था;
 तू नहीं तो, पासवान क्यों बदला मेरा!

परस्तिश में पारदारी चाहिये क्यूँ ;
इक  पल में अरमान क्यों बदला मेरा!

भीगती पलकें यादों की बौछारों से;
ज़मी था आसमान, क्यों बदला मेरा!

फिर वहीं लौट के जाना नहीं है ''तनु'';
रास्ता न था आसान क्यों बदला मेरा!.... ''तनु''

 


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