मैंने सुंदर से ख्वाब ही चाहे ;
फ़िर कहीं कुछ गुलाब ही चाहे !
फ़िर कहीं कुछ गुलाब ही चाहे !
जिंदगी से सवाल था मेरा ;
अच्छे से कुछ जवाब ही चाहे !
आदत बुरी, नहीं जफ़ा देखूँ ;
और ना कभी सराब ही चाहे !
रात दिन एक कर के मैंने तो ;
इतने मुझमें खिताब ही चाहे !
अंधियारा कहीं नहीं देखूँ ;
उजियारे बे-हिसाब ही चाहे !
एक दरिया मिला मुझे मीठा ;
कौन धारे ख़राब ही चाहे !!
'तनु' इंतज़ार अभी ख़ुशी का है;
कौन पागल अज़ाब ही चाहे !!..... ''तनु''
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