सर्द सन्नाटा आसमाँ का ही पिघला है ;
अब यही मंज़र मेरे हमराह निकला है !
राह यही मंज़िल की तरफ ले जाएगी ;
पाँव कैसा भी पड़ा है खुद ही संभला है !
अब यही मंज़र मेरे हमराह निकला है !
राह यही मंज़िल की तरफ ले जाएगी ;
पाँव कैसा भी पड़ा है खुद ही संभला है !
भूल जाओ गुज़री साअतों के हादसे ;
दीप तो सदा ही मुस्कुराता जला है
तूफानी हवाओं से तुम मत डरना कभी ;
कहर-ए-आइन्दा सब के सर से टला है !
बेदाग़ फ़ज़ा है और खुशनुमां समाँ भी ;
धीरे धीरे समय ''तनु ''कैसे बदला है !.. तनुजा ''तनु '
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