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Wednesday, December 20, 2017

सर्द सन्नाटा आसमाँ का ही पिघला है ;
अब यही मंज़र मेरे हमराह निकला है !

राह यही मंज़िल की तरफ ले जाएगी ;
 पाँव कैसा भी पड़ा है खुद ही संभला है !

भूल जाओ गुज़री साअतों के हादसे ;
दीप तो सदा ही मुस्कुराता जला है 

तूफानी हवाओं से तुम मत डरना कभी ;
कहर-ए-आइन्दा सब के सर से टला है !

बेदाग़ फ़ज़ा है और खुशनुमां समाँ भी ;
धीरे धीरे समय ''तनु ''कैसे बदला है !.. तनुजा ''तनु '

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