Labels

Sunday, December 24, 2017

लूँ समेट चादर अपनी रात थोड़ी है अभी ;



लूँ समेट चादर अपनी  रात थोड़ी है अभी ;
बात से फिर क्यों विदा लूँ बात थोड़ी है अभी !

चाँद तारों का डोला छुपा दिया है भोर ने ;
आ रही जो किरणों की सौगात थोड़ी है अभी !

मुस्कुराना ख़ुशियों में भी भूलता मैं जा रहा ; 
चुपके ही चुपके नज़रों की घात थोड़ी है अभी !

राजदाँ थे तुम अदू हुए कब रुकोगे आँसुओं ;
दरिया दिल तू जान ले बरसात थोड़ी है अभी !

पूछना मत तुम कभी मेरी बेताबी का हाल ;
मयस्सर होने लगी इल्तिफ़ात थोड़ी हैं अभी !... ''तनु''

No comments:

Post a Comment