Labels

Friday, January 8, 2021

माँ



मन पीड़ित तन रीतता,  इस दुनिया के बीच ; 
वे ही जन बैरी हुए,       जिनको पाला सींच  ! 

जब जब सुत की सुध जगे, बिसर जाय निज भान ;
नहीं सुध भूख प्यास की,ना सुख दुख को ज्ञान ! 

 मन आशा मेरी पिसी, चकिया के दो पाट ;
अँखियन जल झर झर बहे, देखत सुत की बाट !

सुत बिन जी नाही लगे, पल पल लागे भार ;
पलकों से काँटे चुनूँ  ,   सुत पथ रहूँ निहार !.... ''तनु''








No comments:

Post a Comment