मन पीड़ित तन रीतता, इस दुनिया के बीच ;
वे ही जन बैरी हुए, जिनको पाला सींच !
वे ही जन बैरी हुए, जिनको पाला सींच !
जब जब सुत की सुध जगे, बिसर जाय निज भान ;
नहीं सुध भूख प्यास की,ना सुख दुख को ज्ञान !
मन आशा मेरी पिसी, चकिया के दो पाट ;
अँखियन जल झर झर बहे, देखत सुत की बाट !
सुत बिन जी नाही लगे, पल पल लागे भार ;
पलकों से काँटे चुनूँ , सुत पथ रहूँ निहार !.... ''तनु''
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