आशियाना पंछियों का, उजाड़ने लगी ये हवा ;
झाड़ देगी पत्तियों को, नहीं मानेगी ये हवा!
तिनका तिनका जोड़ कर एक घरौंदा था बनाया;
कैसी जाहिल, फिर दिखा गई बदमिज़ाजी ये हवा!
खौफ़ खाये फूल भी हर, खो गया कलियों का नूर;
तोड़ती क्यों आबरू है, तूफ़ान बनके ये हवा!
रिस रहे नासूर हैं, ज़ख़्म गहरे होते ही गये;
बनती रही नादाँ कैसी, ख़ंज़र चुभाती ये हवा!
यूँ जहर लहू मत उतारिये की मर जाऊँगा मैं;
ये फिज़ा सहमी हुई, दहशतगर्द दिखती ये हवा!
पहरे आवाज़ों पर क्यों, जलते क्यों बेकसूर ये;
बढ़ आती बवंडरों सी, है भूलभुलैया ये हवा!
टिमटिमाती हुई लौ की, जिन्दगी भी क्या जिन्दगी;
बेसहारा महरूम को, बुझा डालेगी ये हवा!
रौँद डाले कुचल डाले , न पता ठिकाना पूछती;
छीन लेती निवाला ''तनु'' भूखी सियासी ये हवा!!...... ''तनु''
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