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Saturday, January 2, 2021

तुम ही नहीं आये रोती रही आँखें

 

तुम ही नहीं आये रोती रही आँखें;
यादों का दामन भिगोती रही आँखें!

बाग में कैसी आज ये हवाएँ चली;
आँसू संग हार पिरोती रही आँखें!

जाने किस पथ भटका है लश्कर मेरा;
फिर बीज चाहत के बोती रही आँखें!

आस पर मेरी पाबंदी की बेड़ियाँ;
मैं पगलाया, पगली रोती रही आँखें!

सहरा किसी दिन समंदर हो जाएगा;
बूँद-बूँद दरिया होती रही आँखें!

दरम्यान शामों सहर के एक लमहा;
तनहा थी ''तनु'' ख़ला ढ़ोती रही आँखें! .... ''तनु''

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