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Monday, March 23, 2020

जले जब दीपक देखी राह

जले जब दीपक देखी राह
संकेतों की उलझती चाह
प्यार को ठुकराया जब तुमने
कौन पकडेगा अपनी बाँह

साँझ सवेरे रोज़ मिलेंगे
सजना तेरी राह तकेंगे
पेड़ों तले नदिया किनारे 
परछाई सूनी पकड़ेंगे
अब न वहाँ कलियाँ बिखरेंगी
धूप सहती है बिखरी छाँह.... कौन पकडेगा अपनी बाँह

कैसे तारों का ये आँगन
आह भरे जब ना है साजन
कोई टिटहरी दूर बोले
अंगना कंगना सोया मन
अब न वहाँ कंगन खनकेगा
कोई चाह ना कोई आह... कौन पकडेगा अपनी बाँह

प्यार के पन्ने  कोरे कोरे
भर भर आते नयन सकोरे
लिखूँ गीत कैसे रूहानी
जज़्बे  सोये जी के मोरे 
दर है सूना,  मन है विव्हल 
सो गया है सपनो का गाँव... कौन पकडेगा अपनी बाँह  .... ''तनु''





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