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Thursday, September 10, 2020

कुल्हाड़ी की लकड़ी


कुल्हाड़ी की लकड़ी पर, हुए पेड़ हैरान !
तू तो हमरी जात की, करती हमें तमाम !!

करती हमें तमाम, क्यों देती मौत सस्ती ?
कैसी तेरी चाह, बसी कातिल की बस्ती ??

तुझे नहीं पहचान, लकड़ी तू है अनाड़ी !
यही मेरा इमान, काटना काम कुल्हाड़ी !!...... ''तनु''

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