आह मैं कैसे भरूँगी !
बात मैं कैसे करूँगी!!
प्यार का आधार रूठा,
विस्तार मझधार छूटा!
टूटते हैं तार दिल के, ,,
रार में कैसे करूँगी !!
खो गई मनुहार मनहर,
सादगी भी सद्भाव की!
वही तप संस्कार लेकर, ,,
हार मैं कैसे वरुँगी!!
मोहिनी मुस्कान तज दी,
नैना कजरारे रोते!
राह रस अनुराग भीगी, ,,
और पग कैसे धरूँगी!!
चाँद बादलों का प्यारा,
चाँदनी भी गुम है कहीं !
मधुमयी श्रृंगार ज़हरी, ,,
गरल पी कैसे गरुँगी!!
अब कहाँ गूँजते भँवरे,
सो गयी हैं चेतनाएँ!
वेदना संवेदना की, ,,
कश्तियाँ कैसे तरूँगी!!
गूँजती शहनाइयाँ थी,
भावना मदहोश होती!
मित्र चित्र में समा गये, ,,
देख कर कैसे मरूँगी!!
आँसूओं की बारिश में,
आँधियों में रात उजड़ी!
प्रीत के उपहार खोकर, ,,
जिंदगी कैसे टरूँगी!! ..... ''तनु''
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