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Wednesday, April 13, 2016



झुर्रियाँ

अश्कों का सैलाब बहाती झुर्रियाँ रह गयी ;
फूल काँटों में भी खिलाती झुर्रियाँ रह गयी !

वो जवानी की मौज वो प्यारे दिन बचपन के ;
रोज़ संगत-असंगत सजाती झुर्रियाँ रह गयी ! 

पाबंदियाँ, संस्कार और वक्त , ,,गज़ब के रहे ;
बुलंदियाँ छूती लक्ष्य को पाती झुर्रियाँ रह गयी !

जिंदगी के दिन कटते अँगुलियों की पोर पर 
करम रेखाएँ घिसी,  हँसाती झुर्रियाँ रह गयी !

दिल अनुभवों का खज़ाना तो चल साथ बाँट लें ;
फिर न कहना ये दिल दुखाती झुर्रियाँ रह गयी !

 छोड़ दुनिया की शय यहीं, जाना सबको है कहाँ ;
 ख़्वाबों ख्यालों के गीत सुनाती झुर्रियाँ रह गयी !

 आस है देखूँ ज़माना, उन आँखों से बचपन की ;
 अँगुलियों की छुअन दिखाती झुर्रियाँ रह गयी !

 चल पड़े वो जानिब-ए-दरिया सबको ही भूलकर !
 चेहरे पे उनके लहराती  झुर्रियाँ रह गयी !!..... तनुजा ''तनु ''











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