ज़लज़ला
लो ख़ाक होकर जिंदगियाँ ये धूल में जा मिली ;
दहकते अंगारों पर थी जली कलियाँ अधखिली !
ज़लज़ला ये कैसा आया फ़िराक ही फ़िराक है??
ऐसा कौन चाहे ? ना थी किसी की चाहतें दिली , ,,,...तनुजा ''तनु''
लो ख़ाक होकर जिंदगियाँ ये धूल में जा मिली ;
दहकते अंगारों पर थी जली कलियाँ अधखिली !
ज़लज़ला ये कैसा आया फ़िराक ही फ़िराक है??
ऐसा कौन चाहे ? ना थी किसी की चाहतें दिली , ,,,...तनुजा ''तनु''
No comments:
Post a Comment