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Thursday, October 20, 2016






रात आई याद का कोई सितारा और है ;
मैं ही हूँ ग़मगीं नहीं, कोई मारा और है !

ये जुनूँ  कैसा देखूँ हर शाख हो गुल से भरी ;
एक ही सँवारे उसे, चलाये कोई आराऔर है !

इश्क में तही-दस्त हूँ फिर भी लुटाती हूँ ख़ुशी ;
जानती हूँ इस नदी का कोई किनारा और है !

जाँ न लो खुद ही बिखर गए हम मानिंद -ए -गुल ;
 खुश -बू है या के जुर्म कोई हमारा और है !

मैं जमीं हूँ आसमा पर निगाहें मेरी लगी ;
धूप में बरसात पेश-ए -जां कोई नज़ाराऔर है ! ... ''तनु ''





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