रात आई याद का कोई सितारा और है ;
मैं ही हूँ ग़मगीं नहीं, कोई मारा और है !
ये जुनूँ कैसा देखूँ हर शाख हो गुल से भरी ;
एक ही सँवारे उसे, चलाये कोई आराऔर है !
इश्क में तही-दस्त हूँ फिर भी लुटाती हूँ ख़ुशी ;
जानती हूँ इस नदी का कोई किनारा और है !
जाँ न लो खुद ही बिखर गए हम मानिंद -ए -गुल ;
खुश -बू है या के जुर्म कोई हमारा और है !
मैं जमीं हूँ आसमा पर निगाहें मेरी लगी ;
धूप में बरसात पेश-ए -जां कोई नज़ाराऔर है ! ... ''तनु ''
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