बात जी की सुना रहा हूँ मैं !
यूँ जी को बहला रहा हूँ मैं !!
साये दरख़्तों के बूढ़े हुए हैं !
यूँ जी को बहला रहा हूँ मैं !!
साये दरख़्तों के बूढ़े हुए हैं !
कबसे उनको जगा रहा हूँ मैं !!
उनको मुझसे शिकायतें होंगी !
उनको मुझसे शिकायतें होंगी !
रोज़ चाँदनी चुरा रहा हूँ मैं!!
धूप से है गिला दर्द सुन ले !
क्यों जमीं को जला रहा हूँ मैं !!
गुल खिलेंगे कहीं कहीं फिर भी !
बूँद बूँद पानी बचा रहा हूँ मैं !!
था कहीं गुनाह ना सजा कोई !
बेवज़ह सज़ा सुना रहा हूँ मैं !!
आबोहवा ज़ख़्म देने लगी अब तो
''तनु'' बेशक मरहम लगा रहा हूँ मैं !!... ''तनु''
धूप से है गिला दर्द सुन ले !
क्यों जमीं को जला रहा हूँ मैं !!
गुल खिलेंगे कहीं कहीं फिर भी !
बूँद बूँद पानी बचा रहा हूँ मैं !!
था कहीं गुनाह ना सजा कोई !
बेवज़ह सज़ा सुना रहा हूँ मैं !!
आबोहवा ज़ख़्म देने लगी अब तो
''तनु'' बेशक मरहम लगा रहा हूँ मैं !!... ''तनु''
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