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Saturday, June 30, 2018

तुम वही मैं भी वही समा तमाम अच्छा लगा !
जिंदगी का अब तलक़ का इंतजाम अच्छा लगा !!

एक गोशा सियह ढूँढूँ आसमाँ के छोर पर  !
की वहीं आता हुआ माह-ए -तमाम अच्छा लगा !!

खूबसूरत चाँदनी भी आज इठलाने लगी !
ये हुआ कैसे मगर पर ये गुमान अच्छा लगा !!

जानती हूँ प्यार में जायज नहीं हैं दूरियाँ !
चाँद छुपता बादलों का इत्तिहाम अच्छा लगा !!

टूट कर चाहा उसे यूँ प्यार था इसरार भी !
मिलकर बिछड़ना फिर मिलन का अंजाम अच्छा लगा !!

तुम वही मैं भी वही 'तनु' चाँदनी सुकून की 
मुहब्बत में सादगी है ये इनाम अच्छा लगा !! ... ''तनु ''

इत्तिहाम = दोष

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