Labels

Saturday, September 8, 2018

इंद्रचाप मोहक रे,

लो किरण किरण छुप गयी,  बादलों के अनंग !
भगीरथी गीत महिमा,    गाये गान मृदंग !!

बड़बोला उद्वेलित है ,    डोला समीर संग, ,,  
स्नेह पूरित मुग्ध उड़ा,  जलधर हुआ पतंग !! 

मचल गयी है बिजुरिया, उड़ा अनोखा रंग ! 
थर थराया तड़ाग तो ,     छुपी जैसे निषंग !!
माटी संग बूँद घुली,  सभी हुई बदरंग !
कूद चलती पोखर से,  बूँद फिर बूँद संग !!

इंद्रचाप मोहक रे,    देख धरा भी दंग !
किरणों की कारीगरी, निखरी नभ के अंग !.... ''तनु''

No comments:

Post a Comment