पत्थर पर मैंने लिखी दास्तान तेरे लिए !
मैं फिर बन गया हूँ आसमान तेरे लिए !!
कितनी हवाओं थपेड़ों से बचना है तुझे !
डूब जाय न तू ये बादबान तेरे लिए !!
देखता हूँ जिसे भी वही चश्मे-नम यहाँ !
पर मेरी इन खुशियों का दान तेरे लिए !!
मन मकीं है मेरा आ के बस जा यार अब !
पड़ा हुआ यहीं खाली मकान तेरे लिए !!
गाँव की जमीन जब रास आ गयी है तुझको !
क्यों बनाऊँ अब नगर में मचान तेरे लिए !!
जो कहता था कल तक, मैं वही सब कहूँगा !
बदलूँगा नहीं मैं ये बयान तेरे लिए !!
दस्तूर है बहारें तो आती ही रहेंगी !
इंतेज़ार में हैं मेज़बान तेरे लिए !!
आसमाँ सी ऊँचाई तू पा लेगा इक दिन !
यूँ भर रहे हैं परिन्दे उड़ान तेरे लिए !!
पलक पाँवड़े बिछाते आसमा ये धरती !
तो अब है नहीं ये पायदान तेरे लिए !!... ''तनु''
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