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Wednesday, February 12, 2020

ओ मेरे निर्मोही फागुन



ओ मेरे निर्मोही फागुन !!
आँखों से क्यों छलका सावन ?
चपल तरंगे जीवन मन की, 
धीमें धीमें बहती कल कल!....  . ओ मेरे 

इस कुदेश में तू आयेगा ?
नहीं तुझे यह मन भायेगा!
देख चतुर्दिक फ़ैल रहे हैं, 
मौन बीतते बेकल से पल ! .. . ओ मेरे 

देह रच गयी पीली सरसों ,
मनवा बुझा बुझा है बरसों ! 
अब कोयल की कराल कूहुक , ,, 
भूल पायगा मेरा ये मन ?. .. ओ मेरे 

धूसर पपड़ाये ठंढे से,
कम्पकम्पाये इन वृक्षों से! 
खिलखिल करती हँसी ढूँढ दे, ,,  
भँवरों की लाकर दे गुन गुन !  . ... ओ मेरे 

ताल लय छंद सभी खो गये, 
फूल उत्फुल्ल सभी सो गये!
जो कभी रवि से मिलती रही , ,,
आज नहीं हैं किरणें छन छन !!. ... ओ मेरे 

प्रीत का गीत नहीं रचेगा !
नहीं अंग चंदन महकेगा!! 
रंगहीन है मन का टेसू , ,, 
पीर ले प्रीत की झुलसा तन !! ... ओ मेरे 







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