ओ मेरे निर्मोही फागुन !!
आँखों से क्यों छलका सावन ?
चपल तरंगे जीवन मन की,
धीमें धीमें बहती कल कल!.... . ओ मेरे
इस कुदेश में तू आयेगा ?
नहीं तुझे यह मन भायेगा!
देख चतुर्दिक फ़ैल रहे हैं,
मौन बीतते बेकल से पल ! .. . ओ मेरे
देह रच गयी पीली सरसों ,
मनवा बुझा बुझा है बरसों !
अब कोयल की कराल कूहुक , ,,
भूल पायगा मेरा ये मन ?. .. ओ मेरे
धूसर पपड़ाये ठंढे से,
कम्पकम्पाये इन वृक्षों से!
खिलखिल करती हँसी ढूँढ दे, ,,
भँवरों की लाकर दे गुन गुन ! . ... ओ मेरे
ताल लय छंद सभी खो गये,
फूल उत्फुल्ल सभी सो गये!
जो कभी रवि से मिलती रही , ,,
आज नहीं हैं किरणें छन छन !!. ... ओ मेरे
प्रीत का गीत नहीं रचेगा !
नहीं अंग चंदन महकेगा!!
रंगहीन है मन का टेसू , ,,
पीर ले प्रीत की झुलसा तन !! ... ओ मेरे
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