बन दीपक अब जलना है
तुम्हे तो ऐसे चलना है।
चट्टानों पर नींद कहाँ है ?
फूलों वाली सेज कहाँ है ?
पर्वत अटल है लावा दिल में ,
चैन कहाँ किसी मंज़िल में ,
शीतल सुगंध हो बहना है ,
तुम्हे तो ऐसे चलना है।
कठिन राह है मंज़िल दूर ?
कंटक पत्थर हैं भरपूर ?
लालच करके छाँव दरख्त की
कभी रुक न जाना तुम ,
संकल्पित हो लक्ष्य ठान कर
अब तो आगे बढ़ना हैं
तुम्हे तो ऐसे चलना है।
फूल हरषाये मन भरमाये ?
आँधी पतझड़ रोके भटकाए ?
पथिक हो पथ से न डिगना ,
दीया बन सबको राह दिखाना ,
बन दीपक अब जलना है
तुम्हे तो ऐसे चलना है। तनुजा ''तनु'' 03 -07 -1972
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