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Wednesday, February 12, 2014

काग़ज़ की चकरी



काग़ज़ की 
 चकरी का चक्कर,
चले हवा से बेहतर
बेहतर ,
जब चलती हवा लगाता.
 चक्कर ,
पे चक्कर..
रंग बिरंगा कई रंगों में ..
उलझता उलझाता,
अटकता अटकाता,
भटकता भटकाता,
मन बच्चों का ..
रुक रुक   जाते बच्चे .
देख    निरखते बच्चे
कैसे घूमा  ? कैसे घूमता ?
 कैसे चलता ?
ये कागज़ का चक्कर ?
  जैसे हवा चलाती इसको .
वैसे चलता जीवन .
तेज़ हवा में     खुश हो घूमता ,
रूकती हवा    रुक जाता,
घूमता तो ख़ुशी है देता  ……
 रुकता तो रुलाता ,
सुख दुःख,
 दोनों  मानव के…
 आँगन …
 आते जाते रहते ,
 दोनों की  है रचना करता  …
 ऊपर वाला दाता। ......................  तनुजा  'तनु'     

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