कभी-कभी भगवन रचे , जीवन में कुछ ख़ास।
अंक छत्तीस जो मिले, तो कर न मन उदास।
तो कर न मन उदास, निभा सारा जीवन लें ,
फल जनमों का सात , ले लें इक ही जनम में
निखर निखर बन जाय साइंसदान और कवि
मनुज के माननीय, सज्जन बन जायें कभी
निनानवे के फेर में, उलझ गए इक बेस !
उलटी गिनती हो गयी, लगी न बिलकुल देर!!
लगी न बिलकुल देर, सोचा होगी हताशा ,
होगा पूरा काम ? अब तो मिलेगी निराशा ,
काम होते सबेर, बड़े यत्न से बावरे !
न आँकड़ा छत्तीस , ना फेरता निनानवे !!…तनुजा ''तनु'' 24 -07 -1980
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