एक पुरानी रचना गीत बन गयी
बद अख़लाक़
बिगाड़ी तुमने नेमतें,
फिर शोर किसलिए ?
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
रोज़ फैलती है पर्वतोँ पर,-
--- धूप की चादर !
बिखेरी तुमने कालिखें,
चहुँ ओर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
एहले चमन न छोड़ा
अब कौम हो उजाड़ते !
कुचले तुमने इंसान,
बरजोर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
मर्दों के लिए औरतें ,
औरतों के लिए मर्द!
खेलते ले खिलौने सा,
ले पतंग डोर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
ऊँटों पे लादे मासूम,
--चकलों पे ख़वातीन!
कितने बनाए मनु बम,
घनघोर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
कोठे पर चल के जाना,
ईमान बेच देना !
हर इल्ज़ाम दूसरे सर,
फिर सिरमौर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
नेमतों को नवाजिये ,-
-- सजाइये ज़मीर को !
कुदरत को जला जला दिया,
फिर विभोर किसलिए
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
हर बुराई हमारी है,
----- हर दोष हमारा है !
बुराई को करें तमाम,
फिर शोर किसलिए ?
उजाड़ी तुमने अराइशें,
फिर शोर किसलिए ?
बिगाड़ी तुमने नेमतें,
फिर शोर किसलिए ?
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