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Wednesday, November 18, 2015

कहाँ है रब दुआ माँगूं उसे कर दूर' गुनाहों से 


इक  दर्द सा रहा ठहरा , दिल तेज़ाब' उबाल गया
फफोलों में जलन झार गम देकर मौत टाल गया 

शब तर रही आँसुओं से,सहर भी दामन-ए- दिल नहीं 

लिपट रेज़ा रेज़ा लहू लाशों का ढेर डाल गया 

कहाँ तू सहारा में भटका हुआ और बे -अमाँ है दिन 
तेरा कदम घर से बाहर, गिरा तुझे निढाल गया 

दिलों जाँ से गुजर तुम्हे हासिल' क्या हो पाएगा 

गुज़रती क्या उस माँ पर अपना जिसका लाल गया 

कहाँ है रब दुआ माँगूँ  उसे कर दूर' गुनाहों से 
बद्दुआ कौन सी जाने किस' का गुनाह साल गया 

वहशी दिल !!! आशिकी तेरी तुझे उसी कूचे में मारेगी ;
सितम की जिस आग में  तू इस जहाँ को डाल गया !!!

हयात-ए-जावेदाँ हो ''तनु''या के दुनिया हो दिलक़शी की , ,,
एक गोशा भी क्या कोई , अपने लिए निकाल गया ??

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