सजा ली साँझ जीवन की
हटा सच झूठ का ताना !
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..
बटोही आज राहों का,
चला जग में रुचा मग में !
सितारों को बना चाहत,
सजाकर आप पहचाना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..
कभी तो चाह मन भर की,
हुई पूरी मैं जानूँगा !
सभी करता रहा जी की
कभी मन झाँक ना जाना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बड़ी थी ऐंठ दौलत की,
कहीं था मुग्ध अपने पे !
बहुत से रूप धारे थे,
कभी जी राम ना माना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..
कभी मन झाँक ना जाना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..
बड़ी थी ऐंठ दौलत की,
कहीं था मुग्ध अपने पे !
बहुत से रूप धारे थे,
कभी जी राम ना माना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..
घटे पल पल घिसे गल गल,
चदरिया जिंदगानी की !
गगरिया गल रही माटी,
यहीं सब छोड़ना-जाना !!
मगन मन कर्म की चिड़िया,
बुनी थी चाँद सा बाना !!..''तनु ''
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