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Tuesday, November 26, 2019

रात की गाँठ मत खोलो,

रात की गाँठ मत खोलो,
अधूरा चाँद टूटेगा !
सजे दिन के घरौंदे में, सलोना ख़्वाब रूठेगा !!

ये भावों की कहानियाँ,
नदी की धार सी बहती !
कह न पाये सुन न पाये,  निरुत्तरित प्रश्न उठेगा !!

अमराई के आमों को,
भ्रमर की गुणी तानों को
हृदय मकरंद गुनता है, कभी तो शब्द फूटेगा !!

अँधेरे को समेटोगे,
अँधेरा भी नहीं रुकता !
फ़लक को भेद कर के फिर, नया सा सूरज उगेगा !!

भरी झुर्री सफेदी सर,
आँतों का ना दाँतों का !
छुपे क़दमों तले चुपके,  वक़्त हर वकत लूटेगा !!

एक दरपन जैसा उफ़क़ ,
देखता साँझ और सुबह !
किरणों से दिन लिखकर के. चाँदनी रात ढूँढेगा !!... ''तनु''



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