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Thursday, September 3, 2015

बूँद 



कभी बादलों से पराई हुई ;
पवन के खटोलों चढ़ाई हुई !

चमकती गमकती लहराती है ;
हवा के हिंडोले झुलाई हुई !

विटप की जड़ों में सहेजे छुपी ;
घटा से मही की चुराई हुई ! 

बढ़ी बाढ़ के रूप में बह चली ;
जनों को घटाती कसाई हुई ! 

लिपटती रही शाख पत्तों से भी ;
बन तुषार श्वेता जमाई हुई !

रवि किरणें बूँदों में छनती रहीं
अनगिन रंगों में नहाईं हुई !

अभी प्यास को चाह इसकी बहुत ;
नववधु सिमटी है लजाई हुई !!!....... तनुजा ''तनु ''

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