बूँद
कभी बादलों से पराई हुई ;
पवन के खटोलों चढ़ाई हुई !
चमकती गमकती लहराती है ;
कभी बादलों से पराई हुई ;
पवन के खटोलों चढ़ाई हुई !
चमकती गमकती लहराती है ;
हवा के हिंडोले झुलाई हुई !
विटप की जड़ों में सहेजे छुपी ;
घटा से मही की चुराई हुई !
बढ़ी बाढ़ के रूप में बह चली ;
जनों को घटाती कसाई हुई !
लिपटती रही शाख पत्तों से भी ;
बन तुषार श्वेता जमाई हुई !
रवि किरणें बूँदों में छनती रहीं;
अनगिन रंगों में नहाईं हुई !
अभी प्यास को चाह इसकी बहुत ;
अभी प्यास को चाह इसकी बहुत ;
नववधु सिमटी है लजाई हुई !!!....... तनुजा ''तनु ''
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