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Wednesday, September 9, 2015



''मेरी दादी'' 
एक बहुत बहुत पुरानी रचना 


     खाने के ना दिख रहे,     दादीजी के दाँत ,
     भोजन कब पचाएगी, अब दादी की आँत ?
     अब दादी की आँत, मुँह  बउ  -  बऊ है करता !
     शब्दों की है पोल ,       नेह  है फिर भी झरता !!
     दादी भर कर अंक ,       गले से हमें लगा लो !
     आशा को दो पंख,        उड़ना हमें सिखला दो !!… तनुजा ''तनु ''



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