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Saturday, May 14, 2016

मरुस्थल



चाँद पर उड़ती रेत है या रुई का खरगोश !
है मन मधुकर कभी मरुस्थल का आगोश !!
पलक झपकते ही वक्त क्या गुल खिलाएगा , ,,,
खुशियों के शोर शराबे कहीं दिल है खामोश !!

जो दिल की लगी है जज्बात चाहिए
कहते हैं  बार बार मुलाक़ात चाहिए
हवाएँ सुनाती हैं रेगिस्तान की कहानी
रहें कहीं भी प्यारे से  हालात चाहिए

रेगिस्तान की आबो हवा सबको पहचानती नहीं
खुद ही मिल लीजिए ये किसी को जानती नहीं
काली पीली आँधियाँ  गर्मी का कहर क़यामत
किसी सहेली नहीं किसी का कहा मानती नहीं

निंदा से सजता रहा, अपना ये संसार !
कौन बताय कौ सुधरे, निंदक भरे बजार !!
निंदक भरे बजार ,  जहां मरुस्थल हो गया
चुभते कंटक हार, दिल में कांटे बो गया !!...तनुजा ''तनु ''






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