कश्ती कागज़ की
बचपन बीतता खुशियों , खेले कैसे खेल !
कागज़ से जहाज़ बने, मुँह से छुक-छुक रेल !!
कितनी दूर जा सकती, ये कागज़ की नाव !
गल कर डूबती पल में , मत कर इसका चाव !!
ये कागज़ की नाव है, ना पंछी ना गाँव !
खिल खिल बच्चों की हँसी, ठंडी ठंडी छाँव !!,.... ''तनु ''
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