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Sunday, September 11, 2016




कश्ती कागज़ की

बचपन बीतता खुशियों ,     खेले कैसे खेल !
कागज़ से जहाज़ बने, मुँह से छुक-छुक रेल !!


 कितनी दूर जा सकती,    ये कागज़ की नाव !
 गल कर डूबती पल में , मत कर इसका चाव !!

 ये कागज़ की नाव है,       ना पंछी ना गाँव !
खिल खिल बच्चों की हँसी, ठंडी ठंडी छाँव !!,.... ''तनु ''


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