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Wednesday, September 7, 2016
गुलाबी सी विभावरी , पूनों का प्रकाश ,
पलक बिछाए बावरी, सोया सा आकाश !
सोया सा आकाश , पल्लव द्रुम भी सो रहे ;
मन में थी इक आस, सपन मिलन में खो रहे !
चाँद यामिनी साथ क्यों खोयी है बिलासी ?
हँसे मंद आकाश, विभावरी है गुलाबी !!.... ''तनु ''
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