सबाब के टूटते दरख़्त
कहाँ चला आया हूँ, मैं कहाँ तक सोचूँ ;
ख्वाहिशे परवाज़ है, आसमां तक सोचूँ !
दर्द किसे ? किसकी आँख का बहा आँसू ?
हकीकत भुला दूँ, ,, और गुमाँ तक सोचूँ , ,,
पड़ा हुआ ओंधा, ज़माना गश है खाकर ;
इक मैं ही चैन खोकर, कहाँ तक सोचूँ !!
दरख़्त सबाब के, टूटते रहे हर पल ;
शजर कभी बदला नहीं, वहाँ तक सोचूँ !
कहाँ दर्द की फ़ुग़ाँ , कौन ये सुनता है ?
कंगन आइने से देखूँ, निहाँ तक सोचूँ , ,,
जिसम मर गया है, सदा मगर ज़िंदा है ;
जिंदगी मौत सी, मैं जहाँ तक सोचूँ , ,,
मर गया ज़मीर, कैसे गिरां तक सोचूँ !!! तनुजा ''तनु ''
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