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Friday, December 11, 2015


सबाब के टूटते दरख़्त 


कहाँ चला आया हूँ, मैं कहाँ तक सोचूँ ;
ख्वाहिशे परवाज़ है, आसमां तक सोचूँ !

दर्द किसे ? किसकी आँख का बहा आँसू ?   

हकीकत भुला दूँ, ,, और गुमाँ तक सोचूँ , ,,

पड़ा हुआ ओंधा, ज़माना गश है खाकर ;
इक मैं ही चैन खोकर, कहाँ तक सोचूँ !!

दरख़्त सबाब के,  टूटते रहे हर पल ;
शजर कभी बदला नहीं,  वहाँ तक सोचूँ !

कहाँ दर्द की फ़ुग़ाँ ,  कौन ये सुनता है ?  
कंगन आइने से देखूँ, निहाँ तक सोचूँ , ,,  

जिसम मर गया है, सदा मगर ज़िंदा है ;
जिंदगी मौत सी,  मैं जहाँ तक सोचूँ , ,,

गुनाह करके वो छूटते, सबाब है क्या ?  
मर गया ज़मीर, कैसे गिरां तक सोचूँ !!!  तनुजा ''तनु ''

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