सागर हूँ मैं.......
मुखालिफत सह, रोते हुए गुजरूँ ?
क़मर को अज़ीज़ मेरे सिवा गुल भी ;
मुखालिफत सह, रोते हुए गुजरूँ ?
खुली मुनाफ़िकत, ढोते हुए गुजरूँ ?
कब तक सहूँ मैं अपने से दूरियाँ ;
अपने ही वजूद से, रोते हुए गुज़रूँ ?
कब तक सहूँ मैं अपने से दूरियाँ ;
अपने ही वजूद से, रोते हुए गुज़रूँ ?
चाहा किए जिसे वो सपनों में मिले ;
अब क्या हरदम, सोते हुए गुजरूँ ?
क़मर को अज़ीज़ मेरे सिवा गुल भी ;
खार और गुल, पिरोते हुए गुजरूँ ?
जाना किया ज़माना सानेहे की ;
अपनी ताजियत से, होते हुए गुजरूँ ?
रेत पर मत लिखो नाम अपना ''तनु '' ;
सागर हूँ सब कुछ, धोते हुए गुजरूँ ??...तनुजा ''तनु ''
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