Labels

Sunday, December 27, 2015

सागर हूँ मैं....... 

मुखालिफत सह,  रोते हुए गुजरूँ ?
खुली मुनाफ़िकत, ढोते हुए गुजरूँ ?


कब तक सहूँ मैं अपने से दूरियाँ ; 
अपने ही वजूद से, रोते हुए गुज़रूँ ?

चाहा किए जिसे वो सपनों में मिले ;
अब क्या हरदम, सोते हुए गुजरूँ ?

क़मर को अज़ीज़ मेरे सिवा गुल भी ;           
खार और गुल, पिरोते हुए गुजरूँ ?

जाना किया ज़माना सानेहे की ; 
अपनी ताजियत से, होते हुए गुजरूँ ?

रेत पर मत लिखो नाम अपना ''तनु '' ;
सागर हूँ सब कुछ, धोते हुए गुजरूँ ??...तनुजा ''तनु ''

No comments:

Post a Comment