अहं
नापते ही रहे अहम के फीते से अब्र को
इक मर्तबा फिर चढ़ाया सूली पे सब्र को
पानी के बुलबुले की मानिंद है जिन्दगी
जिस्म दीया दोनों मिटटी, जी है कब्र को
नापते ही रहे अहम के फीते से अब्र को
इक मर्तबा फिर चढ़ाया सूली पे सब्र को
पानी के बुलबुले की मानिंद है जिन्दगी
जिस्म दीया दोनों मिटटी, जी है कब्र को
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