भूख और गरीबी के, नज़ारे कहाँ से आए हैं ;
तलब थी नहीं इनकी, अश्क ये कहाँ से आये है !
सर -ए -नियाज़ इस जहां का कहाँ तेरे मुक़ाबिल
कह माँ !!! अपने हक़ में ये आबले कहाँ से आये हैं ... तनुजा ''तनु ''
तलब थी नहीं इनकी, अश्क ये कहाँ से आये है !
सर -ए -नियाज़ इस जहां का कहाँ तेरे मुक़ाबिल
कह माँ !!! अपने हक़ में ये आबले कहाँ से आये हैं ... तनुजा ''तनु ''
No comments:
Post a Comment