Labels

Thursday, February 25, 2016

रूह 


रूह अपनी ले चला हूँ इस शहर से ;
टूट कर रोड़ा हुआ हूँ खँडहर से !

छीन दीये की लौ गहराया तम है, ,, 
पूछता फिरता रहा हूँ फिर सहर से !!

टूटती ऊँची चिनाई, है दर कहाँ ;
कौन बतलाओ !!  बचा कैसे कहर से !

गुज़रता दिन आ गयी है रात क्यों कर;
क्या लगेगा वो किनारे ही लहर से !!

सोच !! लिखता खूं भिगो किस्सा-ए-जिंद ;  
बोलियाँ खोयी, गए सो, सौ जहर से !... तनुजा ''तनु ''

No comments:

Post a Comment