रूह
रूह अपनी ले चला हूँ इस शहर से ;
टूट कर रोड़ा हुआ हूँ खँडहर से !
छीन दीये की लौ गहराया तम है, ,,
पूछता फिरता रहा हूँ फिर सहर से !!
टूटती ऊँची चिनाई, है दर कहाँ ;
कौन बतलाओ !! बचा कैसे कहर से !
गुज़रता दिन आ गयी है रात क्यों कर;
क्या लगेगा वो किनारे ही लहर से !!
सोच !! लिखता खूं भिगो किस्सा-ए-जिंद ;
बोलियाँ खोयी, गए सो, सौ जहर से !... तनुजा ''तनु ''
टूट कर रोड़ा हुआ हूँ खँडहर से !
छीन दीये की लौ गहराया तम है, ,,
पूछता फिरता रहा हूँ फिर सहर से !!
टूटती ऊँची चिनाई, है दर कहाँ ;
कौन बतलाओ !! बचा कैसे कहर से !
गुज़रता दिन आ गयी है रात क्यों कर;
क्या लगेगा वो किनारे ही लहर से !!
सोच !! लिखता खूं भिगो किस्सा-ए-जिंद ;
बोलियाँ खोयी, गए सो, सौ जहर से !... तनुजा ''तनु ''
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